उज्जैन में सीखी थी श्रीकृष्ण ने 64 कलाएं, जानिए क्या हैं यह विधाएं

पूर्णिमा पर गुरु सांदीपनि आश्रम में पूजन – अभिषेक करने पहुंचे हजारों श्रद्धालु
समाचार आज @ उज्जैन
उज्जैन शहर के अंकपात क्षेत्र स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में गुरु पूर्णिमा पर देश भर से श्रद्धालु पहुंचे। इस मंदिर का महत्व गुरु पूर्णिमा पर सबसे अधिक होता है। ऋषि सांदीपनि के आश्रम को दुनिया की सबसे पहली पाठशाला के रूप में भी जाना जाता है। यहीं से भगवान श्रीकृष्ण ने 64 कलाओं की शिक्षा हासिल की और योगीराज कहलाएं। यहीं पर सुदामा से मित्रता हुई जो आज भी दोस्ती की सर्वोच्च मिसाल है।
श्री सांदीपनि आश्रम में सुबह 6 बजे गुरु पूर्णिमा महोत्सव की शुरुआत हुई। मंदिर में विराजित भगवान श्रीकृष्ण, बलराम व गुरु सांदीपनि का गंगा, गोमती व प्रयागराज से मंगवाए गए जल से अभिषेक किया गया। कहा जाता है कि गुरू सांदीपनि गोमती के जल में स्नान किया करते थे। स्नान पश्चात पंचामृत व षोड्षोपचार पूजन की मान्यता है। यहां पर विश्व शांति के लिए हवन किया गया। सुबह से ही बड़ी संख्या में बच्चे स्लेट,पाठ्य सामग्री का पूजन करवा रहे हैं। गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत भगवान सांदीपनि ने की थी, इस कारण इस जगह को ब्रह्माण्ड का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता है। प्रथम कुलपति सांदीपनि और प्रथम छात्र के रूप में श्री कृष्ण ने शिक्षा अर्जित की थी।
क्या महत्व है इस आश्रम का
पंडित रूपम व्यास ने बताया की द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का कंस का वध करने के पश्चात मथुरा में यज्ञोपवीत संस्कार हुआ ,श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी को उनके पठन-पाठन की चिंता सताने लगी, वासुदेव जी को महर्षि सांदीपनि व्यास जी के बारे में ज्ञात हुआ कि एक प्रकांड विद्वान शिव उपासक ब्राह्मण गुरु देव सांदीपनि हैं, यहां पर श्री कृष्ण बलराम को अध्ययन करने के लिए भेजा था। गुरु सांदीपनि से यहां पर भगवान श्री कृष्ण बलराम और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की थी। श्री कृष्ण ने गुरु सांदीपनि से 4 दिन में 4 वेद, 6 दिन में 6 शास्त्र,16 दिन में 16 विधा,18 दिन में 18 पुराण सहित कुल 64 दिन में 64 अलग – अलग कलाओं का ज्ञान अर्जित किया था। अंकपात क्षेत्र स्थित गुरु सांदीपनि की तपोभूमि है। इसको द्वापर युग के समय से सारी दुनिया में धर्म, अध्यात्म और वैदिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता रहा है। मंदिर के पुजारी रूपम व्यास ने बताया कि गुरु पूर्णिमा पर सुबह पंचामृत अभिषेक पूजन हुआ। संगम के जल से भगवान सांदीपनि का स्नान कराया। गोमती नदी के जल से अभिषेक पूजन किया।
ये हैं श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई 64 कलाएं
कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण 11 वर्ष सात दिन की उम्र में अपने भाई बलराम के साथ उज्जैन के गुरु सांदीपनि के आश्रम में आ गए थे। यहीं पर उनकी मुलाकात सुदामा से हुई थी। जिसके बाद श्री कृष्ण ने 64 दिन में 64 कलाएं सीखी थी
- गीतकला
- वाद्यकला
- नृत्यकला
- नाट्यकला
- आलेख
- विशेष कच्छेध तिलक रचना
- तण्डुल कुसुमावलि विकार (चावल, कुसुमादि पूजापहारों की विविध प्रकार की रचना)
- पुष्पास्तरण (पुष्पादि द्वारा शय्या रचना)
- दशन वसनांगराग (दांतो, वस्त्र एवं अंगो का रँगना)
- 10 मणिभूमिका कर्म (भूमि को मणिबद्ध करना)
- शयनरचन (पर्यगादि निर्माण)
- उदकवाद्य (जलतरंग बजाना)
- उदकधात् (जल को रोकने की विद्या)
- चित्रयोग (नाना प्रकार के अद्भुत प्रदर्शन और उपाय
- माल्यग्रंथ विकल्प (नानाविध माल रचना)
- नेपध्ययोग (नाना प्रकार कि वेशभुषा और उनकी रचना )
- शेखरापिड योजन (केशों को सजाना और उनमे पुष्प ग्रंथ करना)
- कर्णपत भंग (कर्णभुषण रचना)
- गंधयुक्ति (चंदन, कस्तुरी आदि से रचित सुगन्धित द्रव्य प्रस्तुत करना
- भूषण योजन (भूषण अलंकार बनाना और सजाना)
- इन्द्रजाल (जादूगरी)
- कौचुमार योग (बहुरूप धारण विद्या एवं कुरूप को रूपवान बनाना)
- हस्तलाघव (हाथों के संचालन के द्वारा वस्तुओं का परिवर्तन कर देना)
- चित्रशाकापूय भक्ष्य विकार क्रिया (नाना प्रकार के शाक, पकवान, खाद्य और व्यंजन रचना)
- पावकरस रागासन योजन (पेय पदार्थों या रसों का नानाविध रंगना व उनमें से मधुरत्व भोजन करना)
- सूचीपापकर्म (सिलाई व कढ़ाई रचना)
- वीणा डमरू वाद्य (वीणा, डमरू आदि बजाने की कला )
- प्रहेलिका (गुप्त वाक्यों का अर्थ जानने की कला)
- सब प्रतिमाला (सब वस्तुओं की प्रतिमा बना लेने की कला )
- दुर्वचो योग (जो बोलने या करने मे दु:साध्य हो, उसे बोलना व करना )
- पुस्तक वाचन (ग्रंथ का पाठ करना)
- नाटिका ख्यायिक दर्शन (नाटकादि शास्त्रों का परिज्ञान व उनका निर्माण करना)
- काव्य समस्या पूरण ( काव्य के गुप्त या न कहे हुए पद तथा समस्या के अंश की पूर्ति करना)
- पटिका वेत्र बाण विकल्प (पटसन, वेत्र और बाणादि के द्वारा पदार्थों का निर्माण करना जैसे बाण से खाट बुनना, बेंत से कुर्सी बनाना, पटसन से बोरी आदि का निर्माण करना)
- तुर्ककर्म (सूत कातना या बटना, तकली या चर्खा चलाना)
- तक्षण (जुलाहे का काम)
- वास्तुविद्या (किस स्थान पर कैसा घर बनाया जाए)
- रूप्य रत्न परीक्षा (सोना, चाँदी की परिक्षण का ज्ञान)
- धातुवाद (स्वर्ण बनाना किमियागरी)
- मणिराग (मणि व हीरों को रँगना)
- आकार ज्ञान (पत्थर, कोयला, मणि आदि धातुओं की खानों का ज्ञान)
- वृक्षायुर्वेद योग (वृक्षादि की चिकित्सा का ज्ञान )
- मेष, कुम्कुट, शावक युद्वविधि (मेष, मुर्गी, बटेर आदि को लडाने की प्रणाली का ज्ञान )
- शुकसारिका प्रलापन (तोता मैना को पढ़ाना और बोली सिखाना)
- उत्सादन (मालिश, उबटन करना)46. केशमार्जन कौशल (बाल काटना, वेणी गूँथना)
- अक्षर, मुष्टिका, कथन (अदृष्ट अक्षर का स्वरूप एवं मुट्ठी में छिपी हुई वस्तु का ज्ञान )
- म्लेच्छितक – विकल्प (उर्दू आदि विविध म्लेच्छ भाषाओं का ज्ञान)
- देश, भाषा, ज्ञान (विविध देशों की भाषाओं का ज्ञान )
- पुष्पशकटिका निमित्त ज्ञान (आकाशवाणी निमित्त ज्ञान अर्थात् वायु, वर्षा आदि होने का भविष्य ज्ञान)
- यन्त्रमातृका (पूजा निमित्त यंत्र निर्माण करना) एवं धारण मातृ का यंत्रों को धारण करने का ज्ञान
- सम्पादय (हीरा काटने की विद्या)
- मानसी काव्य क्रिया (दुसरे के मन की बात जानकर उसको कविता में प्रकट करना)
- क्रिया विकल्प (एक ही काम को विविध उपायों से संपादन करने की कुशलता का ज्ञान)
- छलितक योग (छलने की क्रिया)
- अभिधान कोष (शब्दकोष का ज्ञान)
- छन्दोज्ञान (विविध छन्दो का ज्ञान )
- वस्त्रगोपनानि (सूती कपड़े को रेशमी कपड़े की भाँति प्रदर्शित करना)
- द्यूत विशेष (पॉसा खेलने की विद्या)
- आकर्ष क्रीडा (आकर्षण विद्या के बल से पदार्थों को आकर्षित करना)
- बाल क्रीडक (खिलोने तैयार करना)
- वैनायकी (शास्त्र विद्या ज्ञान)
- वैजययिकी (शस्त्र विद्या ज्ञान )
- वैतालिकी (भूत प्रेत सिद्वकरने की विद्या)