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कार हादसा : लेडी कॉन्स्टेबल आरती पाल का शव 68 घंटे बाद शिप्रा नदी में मिला, पुल से 70 मीटर दूर मिली कार

कार हादसा : तीनों पुलिस कर्मियों की दु:खद मौत, कई सवाल छोड़ गई घटना

उज्जैन: उज्जैन में शिप्रा नदी के उस कार हादसा का दर्दनाक अंत हो गया है, जिसमें तीन पुलिसकर्मी बह गए थे। लगातार 68 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद, लापता लेडी कॉन्स्टेबल आरती पाल का शव उनकी कार के अंदर मिला। यह कार उस पुल से करीब 70 मीटर दूर नदी में फंसी हुई थी, जहां से वह शनिवार 6 सितंबर 2025 की रात गिरी थी।

मोहम्मद इरफान नाम के एक स्थानीय गोताखोर ने इस मिशन को सफल बनाया। उन्होंने बताया कि कई दिनों से चल रही तलाश के बाद, उन्होंने अपनी सूझबूझ से उसी जगह पर फोकस किया जहां कार गिरने का अंदेशा था। उनकी यह कोशिश रंग लाई और उन्हें कार के साथ आरती पाल का शव भी मिल गया। आरती के पिता को जब बेटी के शव मिलने की खबर मिली, तो वह बेसुध होकर मौके पर पहुंच गए। पुलिसकर्मी और परिवार के लोगों ने उन्हें मुश्किल से संभाला।

दो शव पहले मिल चुके

यह हादसा शनिवार रात उस समय हुआ था जब उन्हेल थाने के टीआई अशोक शर्मा, एसआई मदनलाल निनामा, और कॉन्स्टेबल आरती पाल एक नाबालिग के अपहरण केस की जांच के लिए जा रहे थे। उनकी कार अनियंत्रित होकर शिप्रा नदी पर बने एक पुल से नीचे गिर गई थी। इस हादसे में टीआई शर्मा का शव रविवार को मिला, जबकि एसआई निनामा का शव सोमवार शाम को भैरवगढ़ क्षेत्र में मिला था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, नाबालिग की लोकेशन मिलने के बाद एसआई अंतर सिंह मंडलोई को जांच के लिए जाना था, लेकिन गणेश विसर्जन में ड्यूटी होने के कारण थाना प्रभारी अशोक शर्मा खुद जांच के लिए गए। उन्होंने एसआई मदनलाल निनामा को साथ लिया। सरकारी गाड़ी स्टार्ट न होने पर वे महिला कॉन्स्टेबल आरती पाल की निजी कार से रवाना हुए थे।

130 गोताखोर 68 घंटे से कर रहे थे तलाश

इस रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीईआरएफ, होमगार्ड, पुलिस और स्थानीय तैराक दल के 130 सदस्य शामिल थे, जो पिछले 68 घंटों से लगातार तलाश कर रहे थे। सर्चिंग के लिए सोनार डिटेक्शन उपकरण की भी मदद ली गई।

 

सर्चिंग के दौरा भी हादसा होते-होते टला

सर्चिंग अभियान के दौरान एक बड़ा हादसा भी टल गया। मां शिप्रा तैराक दल के सदस्य संतोष सोलंकी, जो स्टॉप डैम के पास तलाश कर रहे थे, अचानक बहकर डैम के दूसरी ओर चले गए, जहां पानी का बहाव बहुत तेज था। वह भंवर में फंस गए, जिससे अफरा-तफरी मच गई, लेकिन संतोष ने हिम्मत दिखाते हुए खुद को बचा लिया।

पुल की रेलिंग क्यों हटाई गई?

इस घटना के बाद लोग प्रशासन से नाराज हैं, क्योंकि हर साल बारिश से पहले पुल की रेलिंग हटा दी जाती है। सेवानिवृत्त अधीक्षण यंत्री शोभा खन्ना ने बताया कि यह पुल एक सबमर्सिबल ब्रिज है, जो बाढ़ के समय पानी में डूब जाता है। ऐसे पुलों पर अस्थायी रेलिंग लगाई जाती है, जिन्हें हर साल हटा दिया जाता है। इस पुल का निर्माण केंद्र सरकार ने कराया था और इसकी आधारशिला 1964 में तत्कालीन परिवहन मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने रखी थी।

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