गुड़ी पड़वा पर सीएम डॉ. मोहन यादव ने सूर्य को दिया अर्घ्य, शिप्रा में नौका विहार किया
गुड़ी पड़वा पर दिया संदेश-यह प्रकृति का नववर्ष, देवदर्शन कर संतों का आशीर्वाद लिया

गुड़ी पड़वा gudi pawva पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव उज्जैन में विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुये। 30 मार्च 2025 को सुबह सीएम डॉ. यादव ने भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम नव वर्ष 2082 के आरंभ पर सूर्य देव को अर्ध्य दिया और हिंदू नव वर्ष पर विक्रम ध्वज ,गुडी का पूजन किया। प्रदेश वासियों, देश वासियों को नववर्ष new year vikram samvat की शुभकामनाएं दी।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने पूजन अर्चन उपरांत मां शिप्रा की गोद में नौका विहार कर व्यवस्थाओं का अवलोकन किया, देव दर्शन कर साधु संतों और श्रद्धालुओं से मुलाकात की| मुख्यमंत्री डॉक्टर यादव ने भारतीय नववर्ष के उपलक्ष पर दत्त अखाड़ा में पीठाधीश संत श्री सुंदरपुरी महाराज जी से आशीर्वाद लिया और सत्संग किया। दत्त अखाड़ा के पीठाधीश श्री संत श्री सुंदरपुरी महाराज ने मुख्यमंत्री का शॉल पहनाकर स्वागत कर आशीर्वाद दिया और संत श्री ने मुख्यमंत्री डॉ यादव से कहा की यह हिंदू नव वर्ष ही वास्तव मे प्रकृति का नव वर्ष है जिसमें प्रकृति नव शृंगार करती है. पेड़ पौधों मे नवीन पत्ते आते है , प्रकृति में उत्साह, नव संचार का प्रवाह होता है।
प्राचीन सनातन संस्कृति की अनुपम परंपरा
इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ यादव ने कहा कि भारतीय संस्कृति के अंतर्गत पर्व और त्योहारों का निर्धारण मंगल तिथियां के आधार पर होता है। खगोलीय गतिविधियों की दृष्टि से गुड़ी पड़वा अर्थात प्रतिपदा, वर्ष की पहली मंगल तिथि है। इस मंगल तिथि का अभिवादन कहीं चेटीचंड, कहीं वर्ष प्रतिपदा और कहीं गुड़ी पड़वा सहित अन्य अनेक नाम से किया जाता है। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने बताया की यह प्राचीन सनातन संस्कृति की अनुपम परंपरा है, इसी तिथि पर चंहुओर खुशियों, समृद्धि और हर्षोल्लास का वातावरण होता है। गुड़ी पड़वा पर घर-घर स्थापित होने वाला कलश हमारी पवित्र आत्मा को अभिव्यक्त करता है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि समृद्धि और विकास का नव संवत्सर सभी के जीवन में सुख- समृद्धि और आनंद का भाव लाए, ईश्वर से यही कामना है।
नौका विहार कर व्यवस्थाएं देखी सीएम ने
मुख्यमंत्री डॉ यादव ने पूजन अर्चन उपरांत मां शिप्रा की गोद में नौका विहार कर व्यवस्थाओं का अवलोकन किया। तत्पश्चात देव दर्शन कर साधु संतों और श्रद्धालुओं से मुलाकात की। उन्होंने दत्त अखाड़ा के पीठाधीश्वर सुंदरपुरी महाराज से आशीर्वाद लिया और सत्संग किया। दत्त अखाड़ा के पीठाधीश सुंदरपुरी महाराज ने मुख्यमंत्री का शॉल पहनाकर स्वागत कर आशीर्वाद दिया और संत श्री ने मुख्यमंत्री डॉ यादव से कहा की यह हिंदू नव वर्ष ही वास्तव मे प्रकृति का नव वर्ष है जिसमें प्रकृति नव शृंगार करती है। पेड़ पौधों मे नवीन पत्ते आते है , प्रकृति में उत्साह, नव संचार का प्रवाह होता है। उज्जैन की इस प्राचीन, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक धरोहर को संभालने और संवारने के प्रयासो की संतश्री सुंदर पूरी महाराज ने भूरि -भूरि प्रशंसा कर आर्शीवाद दिया। इस अवसर पर विधायक अनिल जैन कालू हेड़ा, नगर निगम सभापति श्रीमती कलावती यादव, जिला भाजपा अध्यक्ष संजय अग्रवाल, साधु संत, जनप्रतिनिधि और हिंदू संस्कृति के ध्वज् वाहक महिला,पुरुष, बड़ी संख्या मे उपस्थित रहे।
विक्रम महोत्सव में उज्जैन का आसमान हुआ सतरंगी, श्रेया घोषाल का सुरीला स्वर गूंजा
विक्रम विश्वविद्यालय अब कहलायेगा सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय
जानिये विक्रम संवत और उज्जैन का कनेक्शन
हिंदू कैलेंडर का पहला महीना चैत्र और आखिरी महीना फाल्गुन होता है। राजा विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। विक्रमादित्य का जन्म 102 ईसा पूर्व हुआ था। उन्होंने 57 ईसा पूर्व भारत से शक साम्राज्य का पतन किया। शकों को हराने के बाद उन्होंने उनके कैलेंडर शक संवत की जगह इसी साल से विक्रम संवत शुरू किया। इसे आगे चलकर हिंदू कैलेंडर कहा है। दुनिया भर में 60 से अधिक संवत हुए, लेकिन विक्रम संवत सबसे ज्यादा प्रचलित है। उज्जैन में राजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत की शुरुआत उज्जैन से की गई इसीलिए इसका सीधा संबंध उज्जैन से है। उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर के पीछे योगी पूरा में करीब 100 वर्ष पुराना राजा विक्रमादित्य का मंदिर है। हिंदू नववर्ष के कैलेंडर की शुरुआत उज्जैन शहर से हुई। इस कैलेंडर को विक्रम संवत या पंचांग भी कहा जाता है। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत (वर्ष ) की शुरुआत की थी, तभी से इस कैलेंडर के अनुसार हिंदू नव वर्ष मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा पर्व को हिंदुओं का नव वर्ष माना जाता है। मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर सृष्टि की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इसे हिंदुओं के नव वर्ष की तरह मनाते हैं। उज्जैन में चैत्र प्रतिपदा से विक्रम संवत (वर्ष) की शुरुआत हुई। आज भी भी इसे गुड़ी पड़वा पर्व पर शिप्रा नदी के रामघाट पर आतिशबाजी और रंगारंग कार्यक्रम कर विक्रमोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा का संबंध सृष्टि के आरंभ से है। चैत्र की प्रतिपदा एकम के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए गुड़ी पड़वा के दिन नववर्ष मनाया जाता है। करीब 1 अरब 96 करोड़ 58 लाख 81 हजार 126 वर्ष पहले सृष्टि की रचना मानी जाती है। विक्रम संवत भारतीय कालगणना का सबसे अचूक प्रामाणिक पंचांग है। शादी, तीज, त्योहार या अन्य कार्यक्रम इसी पंचांग से तय होते हैं। विक्रम संवत सबसे प्राचीन है। इसके बाद हिजरी शक ईस्वी आदि आए थे। विक्रम संवत को नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम और यूक्रेन जैसे देशों में माना जाता है। नेपाल में तो पूरी तरह विक्रम संवत ही चलता है।