उज्जैनमध्यप्रदेश

दो साल बाद धूमधाम से मनेगा कालिदास समारोह, राष्‍ट्रपति को भेजेंगे बुलावा

Kalidasa Ceremony in Ujjain

समाचार आज । उज्‍जैन

उज्जैन में कोरोना की पाबंदियों के दो साल के बाद इस बार कालिदास समारोह धूमधाम से मनाया जायेगा। इस वर्ष 4 नवंबर से 10 नवंबर तक समारोह मनाया जायेगा। अखिल भारतीय कालिदास समारोह के संबंध में कालिदास संस्कृत अकादमी के अभिरंग नाट्य गृह में स्थानीय समिति की बैठक आयोजित की गई। बैठक में भाग लेने के लिए मध्य प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर उज्जैन पहुंची। बैठक में समिति सदस्यों और गणमान्य नागरिकों ने संस्कृति मंत्री को अपने अपने सुझाव दिए।

स्‍थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करने का कहा

कालिदास समारोह के आयोजन से जुड़ी स्थानीय आयोजन समिति की बैठक में शहर के नागरिकों ने स्थानीय कलाकारों को भी मंच प्रदान करने की अपील की, कुछ ने इसे और अधिक भव्य पैमाने पर मनाने का सुझाव प्रस्तुत किया। बैठक में एक सुझाव यह भी आया कि कालिदास समारोह में पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी सम्मिलित हुआ करते थे लेकिन कुछ समय से यह कार्यक्रम प्रादेशिक स्तर का होकर रह गया है। दर्शकों की अगर बात की जाए तो लाखों रुपए खर्च कर किए जा रहे है लेकिन आयोजन में मुट्ठी भर दर्शक भी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। हालांकि इसके लिए आमंत्रण पत्र हजारों की संख्या में छपवाए जाते हैं, जिन पर लाखों रुपए खर्च भी आता है।

राष्‍ट्रपति-प्रधानमंत्री को बुलाने का निर्णय

संस्कृति‍ मंत्री ने सभी सुझावों को ध्यान पूर्वक सुनकर कार्यक्रम को सफल और भव्य बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने का आश्वासन दिया। संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने बताया कि कार्यक्रम को और अधिक भव्य बनाने के लिए देश की राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू को भी आमंत्रित किया जाएगा। साथ ही देश के प्रधानमंत्री से भी संपर्क कर उन्हें भी आमंत्रित किया जाएगा। यदि किसी कारणवश वे सम्मिलित ना भी हो पाए तो ऑडियो या वीडियो संचार के माध्यम से उनकी उपस्थिति को दर्ज कराने का प्रयास करेंगे।

महाकाल मंदिर के लिए आचार संहिता का कहा संस्कृति मंत्री ने

बैठक के बाद पत्रकारों से रूबरू होते हुए संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने महाकालेश्वर मंदिर में आए दिन हो रही कर्मचारियों और पुजारियों द्वारा अनियमितता और अवैध उगाही के मामले को संज्ञान में लेते हुए कहा कि जल्द ही मंदिर को लेकर एक आचार संहिता भी बनाई जाएगी। मंदिर की अव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए ही नवाचार किए जाते हैं और लगातार व्यवस्थाओं को ठीक किया जा रहा है।

गरबा पांडालों में आईडी से प्रवेश के बयान पर अटल

उषा ठाकुर ने पिछले दिनों गरबा पांडालों के संबंध में दिए गए अपने बयान पर अटल रहते हुए उज्जैन में भी अपने बयान को दोहराया और कहा कि गरबा पंडालों पर जो भी व्यक्ति आए उसे अपना आधार कार्ड और पहचान पत्र जरूर लाना चाहिए। जो भी गलत व्यक्ति पकड़ाया जाता है उस पर गरबा आयोजकों द्वारा निश्चित तौर पर कार्रवाई की जाएगी।

1958 में शुरू हुआ था कालिदास समारोह
Kalidas ceremony started in 1958

कालिदास समारोह एक सांस्कृतिक-साहित्यिक सम्मेलन है जो भारत के मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवप्रबोधिनी एकादशी) को आयोजित होता है। कालिदास समारोह तीन अलग-अलग चरणों में मनाया जाता है। इसका प्रमुख आकर्षण है संस्कृत नाटक और शास्त्रीय नृत्य। सात दिन तक संस्कृत नाटकों और शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन होता है। इसके अलावा देश भऱ के विद्वान संस्कृत साहित्य और कालिदास को लेकर शोध पत्रों का वाचन करते हैं। विश्वविद्यालयीन स्तर पर संस्कृत वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जिसमें देश भर के संसकृत छात्र-छात्राएं भाग लेने आते हैं। इस वाद विवाद प्रतियोगिता के उच्च स्तर का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी जमाने में इसमें प्रतियोगी की हैसियत से बाग लेने आने वाले छात्र आज किसी विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्राध्यापक की हैसियत से इसमें निर्णायक की भूमिका में बैठे नजर आते हैं।

पं. सूर्यनारायण की परिकल्‍पना है कालिदास समारोह

वर्तमान रूप में कालिदास समारोह का आरम्भ सन् १९५८ से हुआ। इसकी परिकल्पना स्वर्गीय पंण्डित सूर्यनारायण व्यास के द्वारा की गयी थी जो तीस के दशक से ही उज्जैन में “कालिदास जयन्ती” का आयोजन करते आ रहे थे। सन् १९७९ में मध्य प्रदेश सरकार ने उज्जैन में कालिदास अकादमी की स्थापना की जो विक्रम विश्वविद्यालय के साथ मध्य-प्रदेश के संस्कृति मंत्रालय के सहायता से इसे प्रतिवर्ष आयोजित करता है।

कौन थे कालिदास

विद्वानों के जाल में फंस विद्योत्‍तमा से विवाह किया

कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार कालिदास शारीरिक रूप से बहुत सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में एक थे। कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे। कालिदास का विवाह विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी से हुआ। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वह उसी के साथ विवाह करेगी। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को हरा दिया तो हार को अपमान समझकर कुछ विद्वानों ने बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह महामूर्ख व्यक्ति के साथ कराने का निश्चय किया।

ऐसे थे कालिदास : जिस डाल पर बैठे, उसे ही काट रहे

चलते चलते उन्हें एक वृक्ष दिखाई दिया जहां पर एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था। उन्होंने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख तो कोई मिलेगा ही नहीं। उन्होंने उसे राजकुमारी से विवाह का प्रलोभन देकर नीचे उतारा और कहा- “मौन धारण कर लो और जो हम कहेंगे बस वही करना”। उन लोगों ने स्वांग भेष बना कर विद्योत्तमा के सामने प्रस्तुत किया कि हमारे गुरु आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आए है, परंतु अभी मौनव्रती हैं, इसलिए ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे। इनके संकेतों को समझ कर हम वाणी में आपको उसका उत्तर देंगे। शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ।

मौन रहकर जीता शास्‍त्रार्थ

विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे। प्रथम प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने संकेत से एक उंगली दिखाई कि ब्रह्म एक है। परन्तु कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। क्रोध में उन्होंने दो अंगुलियों का संकेत इस भाव से किया कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। लेकिन विद्वानों ने उनके संकेत को कुछ इस तरह समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाह रहे हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है। अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता। राज कुमारी ने दूसरे प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया कि तत्व पांच है। तो कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है। उसके जवाब में कालिदास ने घूंसा दिखाया कि तू यदि मुझे गाल पर थप्पड़ मारेगी, मैं घूंसा मार कर तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा। कपटियों ने समझाया कि गुरु कहना चाह रहे हैं कि भले ही आप कह रही हो कि पांच तत्व अलग-अलग हैं पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि। परंतु यह तत्व प्रथक्-प्रथक् रूप में कोई विशिष्ट कार्य संपन्न नहीं कर सकते अपितु आपस में मिलकर एक होकर उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है।

पहली ही रात महामूर्ख साबित हो गए कालिदास

इस प्रकार प्रश्नोत्तर से अंत में विद्योत्तमा अपनी हार स्वीकार कर लेती है। फिर शर्त के अनुसार कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह होता है। विवाह के पश्चात कालिदास विद्योत्तमा को लेकर अपनी कुटिया में आ जाते हैं और प्रथम रात्रि को ही जब दोनों एक साथ होते हैं तो उसी समय ऊंट का स्वर सुनाई देता है। विद्योत्तमा संस्कृत में पूछती है “किमेतत्” परंतु कालिदास संस्कृत जानते नहीं थे, इसीलिए उनके मुंह से निकल गया ऊट। उस समय विद्योत्तमा को पता चल जाता है कि कालिदास अनपढ़ हैं।

पत्‍नी ने धिक्‍कारा तो निकल गए घर से, विद्वान बनकर लौटे

उसने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे विद्वान् बने बिना घर वापिस नहीं आना। कालिदास ने सच्चे मन से काली देवी की आराधना की और उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खटखटा कर कहा – कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि! (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)। विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा — अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (कोई विद्वान लगता है)।

कालिदास बन गए संस्‍कृत के महाकवि

  • कालिदास तीसरी- चौथी शताब्दी मेे गुप्त साम्राज्य के संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं।
  • अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक कुछ उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसमें कवि की कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है।
  • कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं।
  • उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं।साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है।

महाकवि कालिदास का उज्‍जैन से संबंध
Mahakavi Kalidas’s relation with Ujjain

कालिदास की रचना मेघदूतम् में उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए कुछ लोग महाकवि कालिदास को उज्जैन का निवासी मानते हैं। धार्मिक नगरी उज्जैन में शिव के साथ शक्तियां भी विराजमान है। इसी उज्जैन में महाकवि कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका का भी मंदिर है। वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, किंतु उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है।

Related Articles

Back to top button