नए फार्मूले से शराब बेचकर दिल्ली सरकार ने कमाए 26.7% अधिक, अब CBI तलाश रही भ्रष्टाचार

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केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नई शराब नीति लागू की थी। जिसके तहत दिल्ली में 850 दुकानों को लाइसेंस देने से 8900 करोड़ की कमाई सरकार ने की है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार ने अकेले लाइसेंस की नीलामी से 8,900 करोड़ रुपए कमाए हैं। यह नीलामी के लिए सरकार के रखे बेस प्राइस से लगभग 26.7% ज्यादा है। मनीष सिसोदिया ने दावा किया था कि नई पॉलिसी से सरकार को 3500 करोड़ रुपए एक्स्ट्रा रेवेन्यू मिलेगा, जिससे दिल्ली सरकार की कमाई बढ़कर 10 हजार करोड़ हो जाएगी।
22 जुलाई यानी शुक्रवार को नई शराब नीति को लेकर दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना ने मनीष सिसोदिया के खिलाफ CBI जांच की मांग की। सक्सेना ने केजरीवाल सरकार के मंत्री सिसोदिया पर नियमों को नजरअंदाज कर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए हैं। वहीं BJP ने केजरीवाल सरकार पर नए टेंडर के बाद गलत तरीके से शराब ठेकेदारों के 144 करोड़ माफ करने के आरोप लगाए हैं।
2020 में दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति लाने की बात कही थी। मई 2020 में दिल्ली सरकार विधानसभा में नई शराब नीति लेकर आई, जिसे नवंबर 2021 से लागू कर दिया गया। सरकार ने नई शराब नीति को लागू करने के पीछे दिल्ली में शराब माफिया और कालाबाजारी को समाप्त करना, दिल्ली सरकार के राजस्व को बढ़ाना, शराब खरीदने वाले लोगों की शिकायत दूर करना, हर वार्ड में शराब की दुकानों का समान वितरण आदि के प्रमुख कारण बताए थे। नई शराब नीति के तहत पूरी दिल्ली को 32 जोन में बांटकर हर जोन में 27 लिकर वेंडर रखने की बात कही गई। इसमें फैसला किया गया कि दिल्ली सरकार अब शराब बेचने का काम नहीं करेगी। अब दिल्ली में शराब बेचने के लिए सिर्फ प्राइवेट दुकानें होंगी। हर वार्ड में 2 से 3 वेंडर को शराब बेचने की अनुमति दी जाएगी। शराब दुकानों के लिए लाइसेंस देने की प्रोसेस को आसान और फ्लेक्सिबल बनाया जाएगा।
छूट मिली तो लगी लंबी लाइन
केजरीवाल सरकार ने नई शराब नीति में अब लाइसेंसधारियों को MRP प्राइस पर शराब बेचने की बजाय अपनी कीमतें तय करने की छूट दी। इसके बाद दुकानदारों ने शराब पर जमकर छूट देना शुरू कर दिया, जिससे दुकानों के आगे लंबी लाइनें लगने लगी। हालांकि, विपक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया। जिसके बाद दिल्ली आबकारी विभाग ने कुछ समय के लिए छूट वापस ले ली थी।
सरकार पर लगे 4 कानून तोड़ने के आरोप
दिल्ली सरकार की नई शराब नीति को लेकर मुख्य सचिव नरेश कुमार ने जांच कर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि शराब नीति को लागू करने से पहले प्रस्तावित नीति को कैबिनेट के समक्ष रखना होता है। इसके बाद कैबिनेट से पास इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को भेजना होता है। लेकिन, इस प्रोसेस को नहीं अपनाया गया है।
रिपोर्ट में 4 नियमों को तोड़ने के आरोप लगे हैं- GNCTD अधिनियम 1991, व्यापार नियमों के लेनदेन (TOBR)-1993, दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम-2009 और दिल्ली उत्पाद शुल्क नियम-2010। इसी वजह से मुख्य सचिव ने आबकारी विभाग से जवाब भी मांगा था। जब 8 जुलाई को इस संबंध में उपराज्यपाल को फाइल भेजी गई तब जाकर इस मामले पर बवाल मचाना शुरु हुआ।