मध्यप्रदेश में व्यावसायिक शिक्षा की 5 महीने बाद भी नहीं मिलीं किताबें, फोटोकॉपी से पढ़ाई
व्यावसायिक शिक्षा की बदहाली: एक विस्तृत विश्लेषण

मध्यप्रदेश के हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा (vocational education) की हालत खराब है। नया शैक्षणिक सत्र शुरू हुए पाँच महीने बीत चुके हैं, लेकिन 9वीं से 12वीं तक के छात्रों को अभी तक व्यावसायिक शिक्षा की किताबें नहीं मिली हैं। इस कारण बच्चों को मजबूरन किताबों की फोटोकॉपी से ही पढ़ाई करनी पड़ रही है।
मध्यप्रदेश के हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों में राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के तहत शुरू किए गए व्यावसायिक पाठ्यक्रम गंभीर संकट में हैं। इन पाठ्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को कौशल-आधारित शिक्षा देकर रोजगार के लिए तैयार करना है, लेकिन किताबों की कमी ने इस पूरी योजना की नींव हिला दी है। सत्र शुरू हुए पाँच महीने बीत चुके हैं, फिर भी छात्रों को किताबें नहीं मिली हैं।
प्रदेश के 3367 स्कूलों में प्रोफेशनल कोर्स
मध्यप्रदेश सरकार छात्रों को स्कूल स्तर पर ही रोजगार के लिए तैयार करने की दिशा में बड़ा कदम उठा रही है। राज्य के 3,367 स्कूलों में 9वीं से 12वीं तक के छात्रों के लिए व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनका उद्देश्य उन्हें नौकरी और स्वरोजगार के लिए आवश्यक कौशल देना है। इस पहल की शुरुआत 2013 में केवल 50 स्कूलों से हुई थी। आज, यह संख्या बढ़कर 3,367 तक पहुंच गई है, जो राज्य के लगभग 4,500 हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों का एक बड़ा हिस्सा है। प्रदेश में 17 ट्रेडों और 42 जॉबरोल में व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को विभिन्न व्यवसायों के लिए तैयार करना है, ताकि वे रोजगार प्राप्त कर सकें। पाठ्यक्रम में डेटा एंट्री ऑपरेटर, असिस्टेंट ब्यूटी थेरेपिस्ट, रिटेल स्टोर ऑपरेशन असिस्टेंट, सोलर पैनल टेक्नीशियन, ड्रोन सर्विस टेक्नीशियन, जूनियर सॉफ्टवेयर डेवलपर जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं, जो छात्रों को विभिन्न करियर विकल्पों के लिए तैयार करते हैं।
समस्या की जड़: किताबें क्यों नहीं मिल रही हैं?
यह समस्या सिर्फ इस साल की नहीं है। पिछले सत्र में भी छात्रों को किताबें मिलने में छह महीने से ज्यादा की देरी हुई थी। इस साल भी वही स्थिति है। इसके पीछे मुख्य कारण नौकरशाही और प्रक्रियागत अड़चनें हैं:
- NCERT पर निर्भरता: स्कूल शिक्षा विभाग का कहना है कि व्यावसायिक शिक्षा से संबंधित किताबें सिर्फ एनसीईआरटी (NCERT) ही प्रकाशित कर सकती है। राज्य सरकार को इन किताबों का अनुवाद या प्रकाशन करने का अधिकार नहीं है क्योंकि उसने एनसीईआरटी के साथ एक समझौता (MoU) किया हुआ है। यह निर्भरता ही देरी का सबसे बड़ा कारण है।
- बदलता सिलेबस: अधिकारियों का तर्क है कि हर साल कुछ नए कोर्स जोड़े जाते हैं या पुराने कोर्स का सिलेबस बदलता है। इस साल कंस्ट्रक्शन जैसे नए ट्रेड शुरू हुए हैं, जिनकी किताबें अभी तक छपी ही नहीं हैं।
- योजना में कमी: यह पूरी तरह से अधिकारियों की योजना की कमी को दर्शाता है। अगर उन्हें पता था कि प्रकाशन में देरी हो सकती है, तो सत्र शुरू होने से पहले ही इसका समाधान निकाला जाना चाहिए था। छात्रों की संख्या और किताबों की जरूरत का आकलन सत्र शुरू होने के बाद किया जा रहा है, जिससे समस्या और भी बढ़ गई है।
छात्रों पर क्या पड़ रहा है असर?
किताबों की कमी का सीधा और नकारात्मक असर छात्रों की पढ़ाई और उनके भविष्य पर पड़ रहा है:
- फोटोकॉपी से पढ़ाई की मजबूरी: शिक्षा विभाग ने इस समस्या का अस्थायी हल ‘विमर्श पोर्टल’ से किताबों को डाउनलोड करके उनकी फोटोकॉपी बांटने का निकाला है। हालांकि, यह तरीका कारगर नहीं है। फोटोकॉपी की गुणवत्ता खराब होती है, पूरी किताबें उपलब्ध नहीं होतीं, और सबसे महत्वपूर्ण, यह छात्रों के लिए एक बड़ा बोझ बन जाता है।
- प्रैक्टिकल ज्ञान की कमी: व्यावसायिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक (practical) कौशल प्रदान करना है। बिना किताबों के, छात्र सिर्फ मौखिक निर्देशों पर निर्भर हैं, जिससे वे न तो विषय को ठीक से समझ पाते हैं और न ही आवश्यक कौशल सीख पाते हैं।
- भविष्य की अनिश्चितता: यह पाठ्यक्रम करने के बाद छात्रों को ‘सेक्टर स्किल काउंसिल’ से सर्टिफिकेट मिलता है, जो दुनिया भर में मान्य है। इसका उद्देश्य छात्रों को उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए तैयार करना है। लेकिन जब पढ़ाई ही ठीक से नहीं हो पा रही है, तो इन सर्टिफिकेट की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं।
एक तरफ सरकार छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा देने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रही है। पिछले साल भी किताबें मिलने में 6 महीने की देरी हुई थी, और इस बार भी यही हाल है।