मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएँ खुद ‘बीमार’: डॉक्टरों के 15% पद ही मंजूर, उनमें भी 57% खाली
मध्य प्रदेश में डॉक्टरों के आधे से ज़्यादा पद खाली, बेड की भी भारी कमी

मध्य प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद चिंताजनक है। एक तरफ सरकार लगातार नए अस्पताल बनाने और मेडिकल कॉलेजों की सीटें बढ़ाने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ आम जनता को इलाज और डॉक्टरों के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। राज्य में डॉक्टरों के स्वीकृत पदों की संख्या बेहद कम है और उनमें से भी आधे से ज्यादा खाली पड़े हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाएँ खुद ‘बीमार’ नजर आ रही हैं।
मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद ही गंभीर बीमारी से जूझ रही है। एक तरफ सरकार अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ आम नागरिक इलाज और डॉक्टरों के लिए भटकने को मजबूर है। राज्य में डॉक्टरों के जितने पद होने चाहिए, उनके आधे भी भरे नहीं हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ टूटती दिख रही है।
डॉक्टरों की भारी कमी: हर 14,800 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक के अनुसार, प्रति 1,000 व्यक्ति पर एक डॉक्टर होना चाहिए। मध्य प्रदेश की 8.5 करोड़ से अधिक आबादी के लिए करीब 85,000 डॉक्टरों की जरूरत है। लेकिन सरकारी डॉक्टरों के लिए सिर्फ 12,684 पद ही मंजूर किए गए हैं, जो कि जरूरत का महज 15% है। इन स्वीकृत पदों में से भी लगभग 57% खाली पड़े हैं, जिससे हालात और भी बदतर हो जाते हैं। इसका मतलब है कि राज्य में हर 14,800 लोगों पर केवल एक सरकारी डॉक्टर उपलब्ध है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी तो और भी भयावह है, जिनके 75% पद खाली हैं।
सरकारी आंकड़े दिखाते हैं डरावनी तस्वीर:
- विशेषज्ञ डॉक्टर: 5,443 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 1,362 तैनात हैं (75% पद खाली)।
- चिकित्सा अधिकारी: 6,513 पदों में से 3,824 कार्यरत हैं।
- दंत चिकित्सक: 728 पदों में से 247 ही काम कर रहे हैं।
अस्पतालों में बेड की किल्लत: जरूरत का सिर्फ 43% उपलब्ध
डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक, प्रति 1,000 लोगों पर 5 बेड होने चाहिए। जबकि मध्य प्रदेश में प्रति 1,000 लोगों पर केवल 0.65 बेड उपलब्ध हैं, जो देश के औसत (1.3 बेड) से भी बहुत कम है। राज्य में कुल 47,367 बेड हैं, जबकि जरूरत 1 लाख 10 हजार से अधिक की है। यहाँ तक कि राज्य के सबसे बड़े शहरों में से एक, इंदौर का हाल भी बुरा है। 35 लाख की आबादी के लिए 116 सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में केवल 1,240 बेड हैं।
उज्जैन में हालात फिर भी बेहतर
बजट का भी नहीं हो रहा सही इस्तेमाल
एक तरफ सरकार बजट की कमी का हवाला देती है, वहीं दूसरी तरफ मिले हुए फंड को भी खर्च नहीं कर पा रही है। 2024-25 के लिए 15,744 करोड़ रुपये के स्वास्थ्य बजट में से सिर्फ 60% ही खर्च हो पाया। इसी तरह, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं का फंड भी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हुआ। स्वास्थ्य सेवाओं की यह खस्ताहाल स्थिति बताती है कि मध्य प्रदेश को एक मजबूत और कुशल स्वास्थ्य प्रणाली बनाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है। डॉक्टरों की भर्ती, पदों का सृजन और बजट का प्रभावी उपयोग करना ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है।