
उज्जैन। श्री महाकाल मंदिर में दर्शन व्यवस्था के नियम लगातार टूट रहे हैं, जिससे मंदिर की प्रतिष्ठा पर असर पड़ रहा है। मंदिर प्रशासन ने दर्शन को इतना जटिल बना दिया है कि एक तरफ आम भक्त 200 फीट दूर से भी भगवान महाकाल की झलक नहीं देख पाते, वहीं दूसरी ओर कुछ ‘खास’ लोग सीधे गर्भगृह में जाकर अभिषेक कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर मंदिर की सही दर्शन व्यवस्था क्या है और इसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा?
सावन के अंतिम सोमवार 4 अगस्त 2025 को कथावाचक पुंडरिक गोस्वामी के गर्भगृह में जाकर पूजा करने से यह मामला एक बार फिर गरमा गया। मंदिर समिति के प्रशासक ने इसे नियमानुसार बताया, लेकिन उसी समय गर्भगृह में मौजूद अन्य लोगों का कोई जिक्र नहीं किया। इससे पहले, विधायक गोलू शुक्ला और उनके बेटे रुद्राक्ष, और एक अन्य परिवार के गर्भगृह में दर्शन करने के मामले भी सुर्खियों में रहे हैं। लेकिन, इन मामलों पर मंदिर समिति ने कभी स्पष्टीकरण नहीं दिया। यह स्थिति आम भक्तों के बीच भ्रम पैदा कर रही है। मंदिर प्रशासन को साफ करना चाहिए कि गर्भगृह, गर्भगृह की देहरी और नंदी हॉल से दर्शन की पात्रता किसे है, ताकि नियमों की अस्पष्टता खत्म हो और मंदिर की गरिमा बनी रहे।
ऐसे समझिए, मंदिर में चल रही 6 तरह की दर्शन व्यवस्था
- गर्भगृह: गर्भगृह में प्रवेश पर 25 जून 2023 को हुई मंदिर समिति की बैठक में प्रतिबंध लगाया गया था। यह प्रतिबंध 4 जुलाई से 11 सितंबर 2023 तक, यानी 66 दिनों के लिए था, क्योंकि उस साल दो सावन पड़ रहे थे और भीड़ बहुत ज़्यादा थी। उस बैठक में तय किया गया था कि सिर्फ केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री, वीवीआईपी, महामंडलेश्वर और सेवा दे रहे पुजारी ही गर्भगृह में प्रवेश करेंगे। ये 66 दिन बीत चुके हैं, लेकिन तब के नियम अभी भी लागू हैं। इसके बावजूद, आए दिन लोग अंदर प्रवेश कर रहे हैं, जो विवाद का कारण बनता है।
- गर्भगृह की देहरी: यह खास लोगों को दर्शन कराने का एक नया तरीका है, जहाँ अफसर, पुलिस और नेता अपने चहेतों को दर्शन कराते हैं। पुजारियों ने भी अपने यजमानों के लिए इस रास्ते को अपना लिया है। मंदिर समिति ने यह साफ नहीं किया है कि यहाँ से दर्शन की पात्रता किसे है।
- नंदी हॉल: मंदिर समिति से प्रोटोकॉल लेकर दर्शनार्थी नंदी हॉल में जाते हैं। यह एक अघोषित व्यवस्था है, लेकिन इसमें यह तय नहीं है कि प्रोटोकॉल के पात्र कौन हैं। इसे तय करने का अधिकार सिर्फ मंदिर प्रशासन के पास है। पुलिस और प्रशासनिक कर्मचारी बिना किसी रुकावट के अपने लोगों के साथ यहाँ पहुँच जाते हैं। यहाँ से भक्त नंदी प्रतिमा के पास बैठकर दर्शन करते हैं
- नंदी हॉल में बैरिकेड्स: यह व्यवस्था उन भक्तों के लिए है जिन्हें प्रोटोकॉल के तहत दर्शन कराया जाता है। वे नगाड़ा गेट से नंदी हॉल में प्रवेश करते हैं, लेकिन नंदी प्रतिमा के पास न जाकर, बैरिकेड्स से बनी एक कतार के ज़रिए नंदी हॉल के पिछले हिस्से से दर्शन करते हैं।
- बैरिकेड्स नंबर 1: गणेश मंडपम के पास बैरिकेड्स नंबर 1 शीघ्रदर्शन (250 रुपए का टिकट) वालों के लिए है। ये भक्त गेट नंबर 1 या 4 से आते हैं और नंदी हॉल के बैरिकेड्स से पीछे वाली कतार में खड़े होकर दर्शन करते हैं।
- गणेश-कार्तिकेय मंडपम: सामान्य भक्तों के लिए सबसे पीछे गणेश मंडपम और उसके ऊपर कार्तिकेय मंडपम से दर्शन की व्यवस्था है। गर्भगृह से इनकी दूरी 100 से 200 फीट है। इन दोनों जगहों पर 5-6 कतारों में चलते हुए दर्शन होते हैं। कई बार वीआईपी या पुजारी सामने आ जाते हैं, तो सामान्य भक्त बाबा की एक झलक भी ठीक से नहीं देख पाते
बाबा तक पहुँचने का यह रास्ता भी चर्चित
सूत्रों के मुताबिक, मंदिर में बाबा तक पहुँचने का एक गोपनीय रास्ता भी है, जो सरकार या प्रशासन के विशेष कृपापात्रों के लिए है। अगर किसी को गर्भगृह में जलाभिषेक या भस्मारती दर्शन करना है, तो उसे सुबह-सुबह गेट नंबर 12 (बड़ा गणेश मंदिर के सामने) से प्रवेश कराया जाता है, जो कोटितीर्थ कुंड पर खुलता है। वहाँ से उसे नंदी हॉल पहुँचा दिया जाता है। इस दौरान, हरिओम जल के बहाने भगवान महाकाल पर जल अर्पित किया जा सकता है और नंदी हॉल से भस्मारती दर्शन भी हो सकता है। ऐसे समय में मंदिर के कैमरे भी बंद हो जाते हैं। विधायक गोलू शुक्ला और उनके बेटे रुद्राक्ष, कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला इसी श्रेणी में आते हैं।
नियम एकसमान हो, नजदीक दर्शन सभी के लिए सशुल्क हों
कई भक्तों ने इस अलग-अलग दर्शन व्यवस्था पर नाराज़गी जताई है। नागपुर से आए सागर मदनकर ने कहा, “अधिकतर बड़े मंदिरों में वीआईपी को कतार से बचाया जाता है, लेकिन अंत में वीआईपी और सामान्य भक्त एक ही जगह से दर्शन करते हैं। महाकाल मंदिर में भी ऐसी ही व्यवस्था होनी चाहिए।” महाराष्ट्र के अक्षय कामड़ी ने कहा कि दो घंटे लाइन में लगने के बाद भी ठीक से महाकाल के दर्शन नहीं हो पाए।
महेश पुजारी का कहना है कि दर्शन व्यवस्था एकसमान होनी चाहिए। वीआईपी और सामान्य, सभी एक जगह से दर्शन करें। अगर नज़दीक से दर्शन की सुविधा देना ही है तो यह सशुल्क होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वीआईपी के रूप में नज़दीक से दर्शन करने वाले नेता, अभिनेता और व्यापारी सक्षम हैं और शुल्क दे सकते हैं। इससे मंदिर का विकास हो सकेगा। देश के हर बड़े मंदिर में ऐसी ही व्यवस्था होनी चाहिए।