मध्यप्रदेश

महाकाल श्रृंगार के लिए अब तौलकर मिलेगी 3 किलो भांग, मंदिर समिति ने उठाया बड़ा कदम

उज्जैन: ज्योतिर्लिंग भगवान महाकाल के प्रसिद्ध संध्या श्रृंगार में एक बड़ा बदलाव किया गया है। महाकाल मंदिर प्रबंधन समिति ने अब पुजारियों को भांग श्रृंगार लिए तौलकर 3 किलो भांग देने का फैसला किया है।

यह कदम हाल ही में हुए एक घटना के बाद उठाया गया है। समिति ने इस नई व्यवस्था के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक तौल कांटा भी मंगवाया है।

क्यों लिया गया यह फैसला?

18 अगस्त को राजसी सवारी के दिन, महाकाल का भांग श्रृंगार अचानक गिर गया था। इस घटना के बाद, इस पर पुजारी प्रदीप गुरु को नोटिस भी जारी किया गया था।

हालांकि, पुजारी का कहना है कि उन्होंने निर्धारित मात्रा (3 किलो) का ही उपयोग किया था, लेकिन पंचामृत की चिकनाई और गर्भगृह में बढ़ी नमी के कारण ऐसा हुआ।

इस घटना के बाद, मंदिर समिति ने शिवलिंग की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय की गाइडलाइन के अनुसार ही भांग उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।

भांग श्रृंगार: आखिर क्यों बढ़ रहा है इसका क्रेज?

महाकाल मंदिर में भांग श्रृंगार की परंपरा काफी पुरानी है, और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। महाकाल मंदिर को देखकर अब अन्य मंदिरों में भी यह श्रृंगार होने लगा है। श्रृंगार की दक्षिणा ₹1100 तय है, लेकिन भांग, ड्राई फ्रूट्स और अन्य सामग्री को मिलाकर कुल खर्च लगभग ₹10,000 तक पहुंच जाता है।

भक्तजन इस विशेष श्रृंगार के लिए लंबी प्रतीक्षा सूची में रहते हैं और कई बार एक से अधिक भक्त मिलकर भी इसका खर्च वहन करते हैं।

विद्वत परिषद और पुजारियों के मतभेद

भांग श्रृंगार को लेकर विद्वानों और पुजारियों के बीच मतभेद भी सामने आए हैं:

विद्वत परिषद का पक्ष: उज्जयिनी विद्वत परिषद के अध्यक्ष डॉ. मोहन गुप्त का कहना है कि शिवपुराण या किसी भी शास्त्र में भांग से श्रृंगार का उल्लेख नहीं है।

उनका मानना है कि भांग का अत्यधिक उपयोग शिवलिंग के क्षरण का कारण बन सकता है, और इसे तुरंत बंद कर देना चाहिए। वे इसे भोग के रूप में चढ़ाने की बात तो मानते हैं, लेकिन शिवलिंग पर लेपन के पक्ष में नहीं हैं।

पुजारियों का पक्ष: वरिष्ठ पुजारी महेश शर्मा इसका विरोध करते हैं। उनका कहना है कि शिवपुराण में उल्लेख है कि विषपान के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए भांग की औषधि का लेपन किया था।

वे मानते हैं कि हर चीज का उल्लेख वेद-पुराणों में नहीं मिलता और यह एक ऋषि मुनि परंपरा है। उनका यह भी कहना है कि 1978 से पहले से ही महाकाल को भांग अर्पित की जा रही है और यह एक सामान्य व प्राकृतिक घटना थी।

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