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ASI की अब ज्ञानवापी के तहखानों में इंट्री

तीनों गुंबद के अंदर और ऊपर की 3D इमेजिंग और मैंपिग की तैयारी, बहुत कुछ मिल रहा है अंदर से

समाचार आज @ वाराणसी

वाराणसी में चल रहे ज्ञानवापी के सर्वे में सोमवार काे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम को ज्ञानवापी परिसर की सभी चाबियां मिल गई हैं। गुंबद और सीढ़ी का ताला खुलने के बाद हर ताले की चाबी ASI के हाथ आ गई है। मुस्लिम पक्ष की ओर से चाबियों का गुच्छा ASI के अधिकारियों को सौंप दिया गया है। अब तक मस्जिद के मुख्य परिसर और व्यास जी के तहखाने की चाबियों का इंतजार किया जा रहा था। अब जल्द ही सेंट्रल डोम तक सर्वे किया जाएगा।

ज्ञानवापी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम सोमवार को पांचवे दिन के सर्वे के लिए पहुंच गई।सर्वे 11 बजे के बाद शुरू कर दिया गया है। चार दिन के सर्वे में अहम तथ्यों के बाद टीम का फोकस आज तीनों गुंबद पर रहेगा। टीम के 30 सदस्य तीनों गुंबद की 3D इमेजिंग और मैंपिग करेंगे। डिजिटल नक्शे में फोटोग्राफ को शामिल करेंगे। 58 सदस्यीय ASI की टीम के साथ वादी-प्रतिवादी और दोनों पक्षों के नामांकित वकील शामिल रहेंगे। कानपुर आईआईटी के दो GPR एक्सपर्ट भी सर्वे टीम के साथ रहेंगे।

गुंबद और आलों में मिल चुकी हैं मंदिरों जैसी कृतियां

6 अगस्‍त रविवार को चौथे दिन ASI टीम को गुंबदों के सर्वे के दौरान गोलाकार छत में कई नागर शैली डिजाइनें मिली हैं। हॉल में तीनों गुंबद सीलिंग में टीम को कई डिजाइनें मंदिर जैसी कृतियां में झलकती दिखीं। इनकी एक-एक करके फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराई गई। अब तक मंदिरों में दिखने वाले 20 से अधिक आले (दीवार में बनी अलमारी, इसे पूर्वांचल में ताखा कहते हैं) भी दिखे हैं। आलों की संरचना और उनके आसपास उभरे चिह्नों की 3-D मैपिंग भी हुई। हिंदू पक्ष ने कहा कि हम अपने दावे पर फुलस्पीड से आगे बढ़ रहे हैं। गुंबद के पूरे सर्वे में अभी समय लगेगा, मगर सीलिंग की डिजाइन ने हमारा उत्साह बढ़ा दिया है।

ज्ञानवापी के अंदर की दीवार, जिसमें त्रिशूल आदि बने हुए हैं।

व्यासजी के तहखाने में अब काम शुरू

वाराणसी में ज्ञानवापी का सर्वे 4 अगस्त से जारी है। इससे पहले 24 जुलाई को सर्वे हुआ था। ASI उसे पहले दिन का सर्वे मान रही है। इस हिसाब से चार दिन का सर्वे हो चुका है। ज्ञानवापी के तीनों गुंबदों संग उतरी टीम ने ASI ने व्यास तहखाना में पैमाइश की। ASI ने रविवार सुबह सबसे पहले मुस्लिम पक्ष से चाबी लेकर व्यास तहखाने का ताला खुलवाया। गंदगी की सफाई करवाई और एग्जॉस्ट लगवाए, इसके बाद सर्वे शुरू किया गया। दीवारों की 3-डी फोटोग्राफी, स्कैनिंग करवाई। चार्ट में दीवारों पर मिली कलाकृतियों के पॉइंट्स नोट किए। पूरी ज्ञानवापी बिल्डिंग को एक बार में देखने के लिए सैटेलाइट के जरिए 3D इमैजिनेशन तैयार किया जा रहा है। इसमें टीम दीवारों की 3D इमेजिंग, मैपिंग और स्क्रीनिंग भी करेगी। रविवार को ASI से 58 लोग, हिंदू पक्ष से 8 लोग और मुस्लिम पक्ष से 3 लोग मौजूद हैं। वहीं, जिला कोर्ट में शनिवार को सुनवाई हुई। अजय कुमार विश्वेश की अदालत ने आदेश दिया कि ASI को अपनी सर्वे रिपोर्ट 2 सितंबर तक सब्मिट करनी होगी।

सर्वे में कई साक्ष्‍य जुटा चुकी है ASI, 20 दिन लग सकते हैं सर्वे में

सर्वे के तहत ASI ने चार सेक्टर बनाकर 100 मीटर एरियल व्यू फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की। पश्चिमी दीवारों के निशान, दीवार पर सफेदी का चूना, ईंट में राख और चूने की जुड़ाई समेत मिट्टी के कई सैंपल जुटाए हैं। इसमें पत्थर के टुकड़े, दीवार की प्राचीनता, नींव और दीवारों की कलाकृतियां, मिट्‌टी और उसका रंग, अवशेष की प्राचीनता सहित अन्न के दाने का सैंपल जुटाया है। इसके अलावा, टूटी मिली प्रतिमा का एक टुकड़ा भी ASI ने सैंपल में शामिल किया है। ASI विशेषज्ञों के मुताबिक सर्वे 18-20 दिन में पूरा हो सकता है। आधुनिक तकनीक पर आधारित फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, मैपिंग व स्कैनिंग कराई जा रही है।

बिना खुदाई जांच यानी ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (Ground Penetrating Radar).

बिना जमीन की खुदाई किए, अंदर का सच बताने और सबसे सटीक परिणाम देने वाले उपकरण का नाम है ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (Ground Penetrating Radar). ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार यानी जमीन भेदने वाला रडार. यह बड़े काम की तकनीक है और पूरी दुनिया में इसका बखूबी इस्तेमाल भी हो रहा है. भारत में भी इसका इस्तेमाल एएसआई और सेना रेगुलर करती है. देश की बाकी एजेंसियां जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल करती आ रही हैं. इसके परिणाम बहुत सटीक पाए गए हैं. ज्ञानवापी में भी एएसआई इसी तकनीक का इस्तेमाल करने वाली है, जो पूरा सच सामने लाकर रख देगी. इसे भू-मर्मज्ञ रडार भी कहा जाता है. इसके इस्तेमाल का मतलब यह हुआ कि बिना खुदाई किए उपकरणों के सहारे विशेषज्ञ जान सकेंगे कि जमीन के अंदर क्या छिपा है. यह सब कुछ इमेज के जरिए उनके सामने आता है. और साधारण शब्दों में कहें तो यह एक तरह का स्कैनर है जो जमीन के अंदर छिपी सच्चाई को सामने लाता है. जिस तरीके से मेडिकल साइंस में सीटी स्कैन के जरिए डॉक्टर बीमारी का आंकलन करते हैं, अल्ट्रासाउंड के जरिए पेट में मौजूद पथरी या भ्रूण की स्थिति पता की जाती ही, लगभग वैसे ही यह रडार जमीन के अंदर का सच विशेषज्ञों के सामने लाता है.

आरोप है कि मुगल शासक औरंगजेब ने विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी. बीते साल यानी 2022 में हुए एक सर्वे में मस्जिद के वजू खाने में एक शिवलिंग मिला. कहा जाता है आक्रमण के समय पुजारी ने इस शिवलिंग को परिसर स्थित कुएं में छिपा दिया था. कालांतर में इसे वजूखाने के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा.

कैसे जमीन के अंदर का सच लाएगा बाहर?
यह एक पोर्टेबल छोटा सा उपकरण है. जमीन के अंदर जांच के लिए यह विद्युत चुंबकीय किरणें भेजता है. यही किरणें वैज्ञानिकों को इमेज फॉर्म में जमीन के अंदर का सच वापस करती हैं. 15 मीटर गहराई तक का परिणाम यह आसानी से दे देता है. एंटीना जमीन के अंदर के संकेतों के आधार पर परिणाम देता है. जमीन के अंदर दीवार है या पत्थर, कोई धातु है या कुछ और. सारी जानकारी इसके माध्यम से सामने आती है.

इस रिपोर्ट का विश्लेषण करने के बाद भू-विज्ञानी किसी नतीजे पर पहुंचते हैं. उसी हिसाब से आगे की प्रक्रिया तय की जाती है. ज्ञानवापी के केस में भी एएसआई ने अदालत में इसी रडार के भरोसे खुदाई न करने का शपथ पत्र दिया है. इस रिपोर्ट के आने के बाद एएसआई को अगर जरूरत महसूस होगी तो खुदाई के लिए अलग से अनुमति लेगा. सटीक परिणाम की सूरत में खुदाई की जरूरत नहीं पड़ेगी.

ASI अब किसी भी जगह खुदाई से पहले इस रडार का उपयोग करती है. इससे समय भी बचता है और श्रम और पैसा भी. इस रडार के कई रूप अब तक सामने आ चुके हैं.

दुनिया के सामने कब आई यह तकनीक?
इसका इतिहास जानने पर पता चलता है कि साल 1910 में वैज्ञानिक गोथेल्फ लीमबैक और हेनरिक लोबी ने पहला पेटेंट पेश किया था. साल 1926 में हुलसेनबेक ने एक और पेटेंट पेश किया. बेक ने इस तकनीक को और प्रभावशाली बनाया.

साल 1929 में वैज्ञानिक डब्ल्यू स्टर्न ने इसी रडार या तकनीक से ग्लेशियर की गहराई को नापा था. बाद में इस तकनीक पर कई शोध हुए लेकिन 1970 के आसपास इस तकनीक पर जो काम शुरू हुआ वह बेहद महत्वपूर्ण मुकाम पर है.

साल 1972 में इस तकनीक का इस्तेमाल अपोलो मिशन में भी किया गया. आज इसका इस्तेमाल हीरा, सोना, भूजल, मिट्टी, बजरी यानी जमीन के अंदर छिपी किसी भी चीज के लिए किया जा रहा है. सेना जमीन के अंदर विस्फोटकों का पता लगाने में भी इसी तकनीक का इस्तेमाल कर रही है.

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