ghosts listen to geeta : मुक्ति के लिए भागवत गीता सुन रहे हैं कोरोना काल में मृतक
ghosts listen to geeta : विधानपूर्वक नहीं हुआ कोरोना काल मेंअंतिम संस्कार, काशी में भटकती आत्माओं को शंकराचार्य ने सुना रहे गीता

ghosts listen to geeta : क्या भूत-प्रेत होते हैं… वे हमे सुन सकते हैं… हम उन्हें देख सकते हैं… यह सबकुछ अचंभित करने वाली बाते हैं। लेकिन यह तय है कि यहां-वहां मोक्ष की कामना में भटक रही आत्माएं भागवत गीता अवश्य सुनती हैं। यह साबित कर दिया है सनातन धर्म के प्रथम पूजनीय संत शंकराचार्य ने। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने श्राद्ध पक्ष में काशी के गंगा घाट पर ऐसी ही भागवत कथा का आयोजन किया जिसे सिर्फ भटकती आत्माएं ही सुन रही हैं। भागवत कथा का वाचन स्वयं शंकराचार्य कर रहे हैं।
गीता सुनती हैं भटकती आत्मा जीवित व्यक्ति को आमंंत्रण नहीं
शंकराचार्य काशी के श्री विद्यामठ के बंद कमरे में कथा का वाचन करते हैं। रोज करीब ढाई घंटे श्रीमदभागवत मुक्ति कथा का आयोजन चलता है। एक सवाल के जबाव में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद कहते हैं, “मेरे श्रोता केवल भूत-प्रेत हैं। श्रीमद्भगवत मुक्ति कथा उन सभी आत्माओं के लिए है, जो पिछले 2 साल में अकाल मौत के शिकार हुए। कोविड की वजह से जिनका विधि-विधान से अंतिम संस्कार नहीं हुआ, वे सभी अपनी मुक्ति के लिए आज गंगा के रेत पर आ गए हैं। अगले 7 दिन तक वे लोग यहीं पर रहेंगे।”
कथा के प्रारंभ में मैं उनसे गुजारिश करता हूं कि आप 7 दिनों तक इस कथा को सुनते रहें। इस कथा में किसी जीवित व्यक्ति को नहीं आमंत्रित किया है। ” शंकराचार्य कहते हैं, “हमारे गुरु ने भोपाल गैस कांड और उत्तराखंड त्रासदी में अकाल मौत के शिकार हुए लोगों की आत्माओं की मुक्ति कराई। तो अब मेरा कर्तव्य है कि कोविड के दौरान मरे लोगों की आत्मा को मैं मुक्त करा दूं।”
सर्व पितृ अमावस्या पर श्राद्ध और पिण्डदान
मठ में 13 अक्टूबर तक मुक्ति कथा चलेगी। कोविड के दौरान जो भी परिजन अंतिम संस्कार नहीं करा पाए हैं, उन सभी की मुक्ति होगी। 13 अक्टूबर को 10 हजार से ज्यादा वैदिक ब्राह्मण अनुष्ठान कराएंगे। सर्वपितृ अमावस्या पर सामूहिक रूप से ज्ञात और अज्ञात मृतकों के लिए श्राद्ध और पिंडदान होंगे।
हवा के रूप में होता है भूतों का शरीर
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कहते हैं, “शास्त्रों में बताया गया है कि प्रेत भी दिखते हैं। उनका मुंह सुई की नोक के बराबर होता है और पूरा शरीर हवा का होता है। ज्ञान और मुक्ति दोनों का जन्म काशी में ही हुआ है। इसलिए, काशी में भागवत गीता मुक्ति कथा कह रहे हैं। यह एक मुक्ति मंडप है। यहां हिंदू के अलावा किसी दूसरे धर्म का भी होगा तो उसकी भी मुक्ति हो जाएगी।”
केवल इंसान ही पहुंचता है यमद्वार, जानवर नहीं
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि चाहे मनुष्य हो या जानवर, हर किसी को अपने कर्मों के अनुसार जन्म के चक्रों में बंधना पड़ता है जब तक कि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति ना हो जाए। वहीं अकाल मृत्यु के शिकार लोगों की आत्माओं को भी मोक्ष की जरूरत होती है। यमराज के दरवाजे तक केवल इंसान ही पहुंचता है। कोई जानवर नहीं। जानवर को मरने के बाद तुरंत दूसरा शरीर मिल जाता है, लेकिन इंसान सूक्ष्म शरीर और प्रेत बनकर अपनी मुक्ति के लिए दर-दर भटकता है। जब तक उसका श्राद्ध और पिंड दान न हो जाए।”
अपनों से मोह और पाप-पुण्य का हिसाब के कारण मिलता है वायवीय शरीर
शंकराचार्य कहते हैं, “इंसान के मरने के बाद, जो भी पाप-पुण्य है, उसे भोगने के लिए एक हवा की शरीर मिलती है। इसे कहते हैं वायवीय शरीर। क्योंकि, बिना शरीर के भोग नहीं सकते। इस शरीर में मरा व्यक्ति अपने कर्मों को ढोकर यमराज के पास ले जाता है। मरने के बाद तो केवल स्थूल शरीर छूटता है, सूक्ष्म बचा रहता है। इसलिए, उस आत्मा के अंदर अभी भी अपने लोगों के प्रति मोह भरा रहता है। वह अपने बेटे, पत्नी, मां-बाप, भाई के पास किसी न किसी रूप में आता ही रहता है। इसलिए, मौत के बाद पूरा कर्म करना बहुत जरूरी है।”
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