कहार पर कहर : भगवान महाकाल की सवारी में धक्का-मुक्की के बीच अटैक आया
कहार पर कहर देख साथी बोले महाकाल सब ठीक करेंगे, जानिए सवारी में कहारों का कितना महत्व

कहार पर कहर का घटनाक्रम सोमवार 29 जुलाई को भगवान महाकाल की उज्जैन में निकलने वाली दूसरी सवारी में दिखाई दिया। यहां सवारी के बीच अचानक धक्कामुक्की के कारण बाबा महाकाल की पालकी लेकर चल रहे कहार को चक्कर आ गये। बीपी बढ़ने पर वह मूर्छित हो गया। उसे अस्पताल ले गये तो पता चला पैरालिसिस अटैक आया है। हालांकि इस घटना के बाद सभी को विश्वास है कि महाकाल सब ठीक करेंगे।
सावन महीने के दूसरे सोमवार को उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी को धूमधाम से निकाली। पालकी के मंदिर से बाहर आने के पहले ही मंदिर परिसर में बाबा महाकाल की पालकी को उठाने वाले एक कहार को पैरालिसिस अटैक आ गया. आनन-फानन में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है। उसकी हालत अब ठीक है।
सोमवार को बाबा महाकाल की सवारी उज्जैन शहर में भ्रमण पर निकली थी। शाम 4 बजे सवारी जब मंदिर के बाहर निकलने वाली थी उसी वक्त यह घटनाक्रम हुआ और अचानक महाकाल की पालकी को कंधा दे रहे कहार की तबीयत खराब हो गई. सवारी में शामिल लोग एंबुलेंस से कहार को तुरंत अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों की जांच-पड़ताल में पता चला कि उसे पैरालिसिस अटैक आया है।
मंदिर परिसर तक ही पहुंची थी पालकी
सोमवार शाम को भगवान महाकाल की पालकी सभागृह से निकलकर मंदिर प्रांगण में आई थी। यहां पर स्थित श्री सिद्धि विनायक गणेश मंदिर और साक्षी गोपाल मंदिर पर पालकी में विराजित भगवान महाकाल का पूजन अर्चन किया जाता है। मंदिर प्रांगण में पालकी आई। मंदिर पर पूजन-अर्चन के बाद जैसे ही पालकी मंदिर से बाहर निकलने की ओर आगे बढ़ी, उसी वक्त कहार की तबीयत बिगड़ी और वो मूर्छित हो गये। उन्हें तुरंत साथियों ने संभाला। बीमार हुए कहार का नाम दीपक पिता राजू कहार (26) निवासी नृसिंह घाट है। जब साथी कहारों ने दीपक को गिरते हुए देखा तो पहले तो वह कुछ समझ नहीं पाए, लेकिन बाद में उन्होंने दीपक को तुरंत सवारी के बाहर किया। दीपक को मंदिर प्रांगण में मौजूद अस्थाई अस्पताल के कर्मचारियों ने प्राथमिक उपचार दिया। इसके बाद उन्हें मंदिर के अस्पताल ले जाया गया। जहां उनका बीपी हाई मिला तो महाकाल सवारी में शामिल एंबुलेंस से तुरंत निजी अस्पताल ले जाया गया। जहां जाकर यह पता चला कि उन्हें पैरालिसिस अटैक आया था। हालांकि समय पर इलाज मिलने से उनकी हालत देर रात तक खतरे से बाहर थी।
परिजनों को सूचना देकर बुलाया
कहार दीपक को अस्पताल पहुंचाने के बाद उनकी तबीयत खराब होने की सूचना परिजनों को दी गई। परिजन सूचना मिलते ही तुरंत अस्पताल पहुंच गए. परिजनों का कहना था कि दीपक हर बार ही सवारी उठाने वाली टीम में शामिल रहता है। हमेशा की तरह इस बार भी पालकी को कंधा देने के लिए सवारी में गया था। उसे पूर्व मेें भी कोई बीमारी नहीं थी।

भगवान महाकाल की सवारी में विशेष महत्व है कहारों का…
हम आपको बता दें कि उज्जैन के कहार समाज का भगवान महाकाल की सवारी में विशेष महत्व है। प्राचीन काल से जब से भगवान महाकाल की सवारी की परंपरा शुरू हुई है, तभी से कहार समाज भगवान महाकाल की सवारी को कांधे पर उठाता आया है। आज भी कहार समाज के युवा भगवान महाकाल की पालकी को एक राजा की पालकी की तरह सावधानीपूर्वक निकालते हैं। लगभग 80 से अधिक कहार बाबा महाकाल की पालकी को उठाने की जिम्मेदारी में तैनात रहते हैं। महाकालेश्वर मंदिर में वर्षों से निकलने वाली सभी सवारियों में कहार समाज के लोग बाबा की पालकी को कंधों पर उठाते हुए आए हैं। अभी भी 250 किलो की पालकी उठाकर 5 किलोमीटर लंबे सवारी मार्ग पर चलना और वापस मंदिर में लाना इन्हीं के कंधों पर होता है। वर्तमान में यह पूरी व्यवस्था 80 कहारों की 6 टीम संभाल रही हैं।
यह चौथी पीढ़ी है कहारों की
पालकी प्रमुख प्रशांत चंदेरी बताते हैं कि बाबा महाकाल की सभी सवारियों में कहार समाज के लोग ही महाकाल बाबा की पालकी उठाते हैं। यह इनकी चौथी पीढ़ी है। इसमें 20 साल से लेकर 70 साल तक के कहार मौजूद हैं। एक समय था जब बाबा महाकाल की पालकी उठाने के लिए 25 व्यक्ति हुआ करते थे लेकिन समय के साथ पालकी का स्वरूप भी बदला है और कहारों की संख्या भी। अब बाबा महाकाल की हर सवारी में पालकी उठाने के लिए 80 कहारों की 6 टीम तैनात रहती हैं। जो बारी-बारी से पालकी को उठाने के लिए कंधे बदलते हैं। इसमें पालकी के दोनों सिरों पर तैनात होने वाले सदस्य, भेंट लेने वाले सदस्य, पैसे उठाने वाले सदस्य सभी की जिम्मेदारी पहले से ही तय रहती है। वहीं जिला प्रशासन द्वारा चिंहित 24 से 25 स्थानों पर पालकी को रोकना और पूजन करवाना भी 80 कहारों के जिम्मे होता हैं। मुखिया हेमराज कहार सवारी में व्यवस्थाओं के लिए मार्गदर्शन देते हैं। भगवान महाकाल की करीब 250 किलो वजनी पालकी को 4 से 5 किमी लंबे सवारी मार्ग पर व्यवस्थित लेकर चलना और तय समय पर वापस मंदिर तक लाने में पालकी उठाने वाले 80 कहारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं, जो एक-दूसरे के सहयोग के लिए करीब 6 स्थानों पर कंधे बदलते हैं। इसमें पहली टीम महाकाल मंदिर से रामघाट तक, दूसरी टीम रामघाट से ढाबा रोड स्थित जगदीश रोड तक, तीसरी टीम जगदीश मंदिर से छत्रीचौक तक, चौथी टीम छत्रीचौक से पटनी बाजार तक, पाँचवी टीम पटनी बाजार से महाकाल मंदिर तक पालकी उठाती हैं। वहीं छटवीं टीम इमरजेंसी के लिए होती हैं जो किसी पालकी उठाते सदस्य को थकान होने तथा जरूरत पड़ने पर मदद के लिए तैनात रहते हैं।