अध्यात्म

Govardhan puja : गोवर्धन पूजन 14 नवंबर को, 13 को मनेगी सोमवती अमावस्‍या

Govardhan puja : पशु धन पूजन की है मान्‍यता..., महाकाल मंदिर की गोशाला में होगी पूजन

Govardhan puja : दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजन की मान्‍यता है। लेकिन इस साल तिथियों के उलटफेर के कारण गोवर्धन पूजन दिपावली के दो दिन बाद यानी 14 नवंबर को मनाया जायेगा। दीपावली के अगले दिन 13 नवंबर को सोमवती अमावस्‍या का योग बने के कारण यह स्थिति बनी है।

दीपोत्सव के अंतर्गत गोवर्धन पूजा की मान्यता है। इस बार गोवर्धन पूजा के आधे दिन से ज्यादा समय तक अमावस्या होने के कारण 13 की जगह 14 को की जाएगी। सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व माना गया है। भगवान श्री कृष्ण ने बृजवासियों को इंद्र के कोप से बचाने के लिए अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था, जिसे गोवर्धन पूजन के नाम से जाना जाता है।

गोवंश की होती है पूजा

Govardhan puja गोवर्धन पूजा के दिन गोवंश का शृंगार किया जाता है। सुबह से ही उनकी सेवा का क्रम शुरू हो जाता है। गोबर से गोवर्धन बनाकर उसका श्रद्धापूर्वक पूजन-अर्चन किया जाता है। दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा मंगलमय उदय मान से गोवर्धन पूजा को विधि-विधान के साथ किया जाएगी। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहते हैं। पं. अजय शंकर व्यास के अनुसार 14 नवंबर, मंगलवार को गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6.43 बजे से सुबह 8.52 बजे तक है। उदय तिथि से दिनभर पूजन किया जा सकता है।

Govardhan puja in mahakal
Govardhan puja in mahakal

महाकाल मंदिर की गोशाला में होगा पूजन

महाकालेश्‍वर मंदिर की ओर से गोवर्धन पूजन का आयोजन मंदिर की गोशाला में होता है। 14 नवंबर को श्री महाकालेश्‍वर मंदिर की गोशाला में सुबह आयोजन होगा। जिसमें पुजारी परिवार के सदस्‍य, महिलाएं, बच्‍चे वहां जमा होंगे और गोबर का पर्वत नुमा गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा की जायेगी। खीर-पूड़ी, मिष्‍ठान्‍न का भोग लगाया जायेगा। गायें और गोवंश को सजाया जायेगा और उनका पूजन होगा।

उज्‍जैन में कई जगह किया जाता है गोवर्धन पूजन

धार्मिक नगरी उज्‍जैन में जगह-जगह गोवर्धन पूजन किया जाता है। शहर में गोपाल मंदिर, इस्‍कॉन मंदिर, समस्‍त गोशालाएं, भर्तृहरि गुफा आश्रम, मंगलनाथ मंदिर, सहित समस्‍त मठ-आश्रम-गोशाला और गोपालकों के घर गोवर्धन पूजा के आयोजन किये जाते हैं। यादव समाज भी इसे अपने महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार के रूप में मनाता है। मंदिरों में अन्‍नकूट के आयोजन भी होते हैं।

Govardhan puja गोवर्धन पूजा से जुड़ी़ कथाएं

कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (दीपावली के अगले दिन) गोवर्धन पूजा Govardhan puja की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंंंग। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

श्रीकृष्‍ण ने किया था इंद्र के अहंकार को नष्‍ट

गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है। कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ” मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की उपज होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहँकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के स्थान पर गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलधार वर्षा आरम्भ कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियन्त्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इन्द्र निरन्तर सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे लगा कि उनका सामना करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यन्त लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहँकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।

गोवर्धन पूजा की विधि

इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है. इस दिन आप सवेरे समय पर उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करीये पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से बनाएँ। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप बनाकर फूल, पत्ती, टहनीयो एवँ गाय की आकृतियों से सजाया जाता है। गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

गोवर्धन पूजा के दौरान एक मंत्र का जाप करें

कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परम्परा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान करा कर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सिंह पर घी लगाए गुड खिलाएं. गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है। फल मिठाई इत्यादि आप पूजा के दौरान गोवर्धन में अर्पित करिए। गन्ना चढ़ाइये। एक कटोरी दही गोबर के गोवर्धन की नाभि स्थान में डालते हैं। गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा करें।परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दूसरा व्यक्ति अन्न – जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।

दीपावली और सोमवती अमावस्या

Diwali and Somvati Amavasya : दिवाली के दिन यानी 12 नवंबर को दोपहर के समय 2 बजकर 45 मिनट पर अमावस्या तिथि लग रहे है और अगले दिन 13 नवंबर दिन सोमवार को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट पर अमावस्या तिथि का समापन हो रहा है। सोमवार और अमावस्या तिथि होने के कारण इस अमावस्या को सोमवती अमावस्या का संयोग बना है। शास्त्रों में बताया गया है कि सोमवार के दिन अमावस्या तिथि अगर थोड़ी देर के लिए ही लग जाती है तो उस अमावस्या को सोमवती अमावस्या माना जाएगा। दिवाली के दिन सोमवती अमावस्या का लगना बहुत शुभ फलदायी माना गया है। इस संयोग के बनने से महालक्ष्मी और गणेश के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी कृपा प्राप्त होगी। सोमवती अमावस्या का व्रत रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सभी संकट दूर हो जाते हैं। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए। लेकिन दिवाली के दिन सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है तो आप लक्ष्मी, गणेश और कुबेर पूजन के साथ भगवान शिव की भी पूजन करना सौभाग्यदायक व मंगलकारी माना गया है। सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल की पूजा करना चाहिए। अगर संभव हो सके तो पूरे दिन भोजन में नमक का प्रयोग ना करें।

 

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