नगर पूजा कर देवी को लगाया शराब का भोग
नगर पूजा की अनोखी परंपरा है उज्जैन में, पूरे शहर में पैदल घूमकर मदिरा की धार चढ़ाता है सरकारी अमला

नगर पूजा की मध्यप्रदेश की धार्मिक नगर उज्जैन में अनोखी परंपरा है। जो बरसों से चली आ रही है। शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर शुक्रवार 11 अक्टूबर की सुबह पारंपरिक रूप से शासकीय नगर पूजा की गई। इस दौरान कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने चौबीस खंभा मंदिर में विराजित माता महामाया और महालया माता को मदिरा की धार चढ़ा कर आरती पूजन किया। पूजन के बाद मंदिर से दल के रूप में सदस्य हांडी से मदिरा की धार चढ़ाते हुए आगे बढ़े। चौबीस खंबा मंदिर से सुबह शुरू हुई नगर पूजा का समापन हांडीफोड़ भैरव मंदिर पर हुआ। इस दौरान नगर के 40 से अधिक देवी, भैरव और हनुमान मंदिरों में पूजन किया गया। नगर पूजा कर माता से नगर की सुख-समृद्धि और प्राकृतिक प्रकोप से रक्षा की कामना की जाती है।

20 बोतल शराब लगती है पूजन में
शराब और पकवानों का भोग लगाने और नगर पूजा की जवाबदारी पटवारी, कोटवार और एक वसूली पटेल के हाथों में होती है। राजस्व विभाग के सहयोग से होने वाली पूजा का कुल खर्च 18000 हजार रुपए आता है। अंकपात स्थित हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर नगर पूजा का समापन होता है। करीब 20 साल पहले वसूली पटेल को यहीं से 20 बोतल शराब पूजन के लिए दी जाती थीं। पटवारी इन्हें 2 दिन पहले ही मंदिर में पहुंचा देते थे।उज्जैन शहर में बूंद-बूंद कर 27 किमी तक शराब की धार लगाने की परंपरा के लिए करीब हफ्तेभर पहले एसडीएम दफ्तर से आबकारी विभाग को पत्र जारी किया जाता है। यह पत्र पटवारी द्वारा रेलवे स्टेशन स्थित आबकारी विभाग के कार्यालय पहुंचाया जाता है। यहां भंडार से आबकारी विभाग पूजन के लिए मुफ्त 31 बोतल देता है।
अष्टमी को तांत्रिक स्वरूप में होती है पूजा
भगवान महाकालेश्वर की पावन नगरी उज्जैन में शासन की ओर से आश्विन मास के शुल्क पक्ष की अष्टमी को यह पूजा तांत्रिक स्वरूप में होती आ रही है। इस दौरान नगर के 40 देवी, भैरव और हनुमान मंदिरों में पूजन होता है। ढोल-नगाड़ों के साथ माता की महा आरती के बाद माता को सोलह श्रृंगार की सामग्री, चुनरी और बड़बाकल का भोग लगाया जाता है। इसी दिन दोपहर 12 बजे हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह में भी माता को श्रृंगार सामग्री अर्पित कर शासकीय पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां को मदिरा का भोग लगाने से शहर में सुख-समृद्धि आती है।

चने-गेहूं से बने पकवान और हलवा-पूरी-भजिये का लगता है भोग
पिछले 24 साल से नगर पूजा की व्यवस्था देखने वाले पटवारी भगवान सिंह यादव बताते हैं कि पूजन के लिए करीब 45 तरह का सामान दो दिन पहले लेकर रख लिया जाता है। एक दिन पहले चौबीस खंबा माता मंदिर के पास काले चने और गेहूं को उबालकर करीब 35 किलो बलबाकल तैयार करते हैं। इसके साथ ही माता को भोग के लिए पूरी-भजिया भी बनाए जाते हैं। अष्टमी के दिन सुबह 6 बजे पूरा सामान तैयार करके रख लिया जाता है। आरती के बाद 5 ढोल से शहर के 40 मंदिरों में पूजन किया जाता है। चौबीस खंबा मंदिर में माता महामाया और महालया की पूजा के बाद शासकीय दल नगर पूजा के लिए निकलता है। कोटवार मदिरा से भरी हांडी लेकर चलते हैं, इसकी धार नगर के रास्तों पर बहती है। ढोल के साथ निकले शासकीय दल के सदस्य 12 घंटे तक 27 किलोमीटर के दायरे में आने वाले चामुंडा माता, भूखी माता, काल भैरव, चंडमुंड नाशिनी सहित 40 देवी, भैरव और हनुमान मंदिरों में पूजा करते हैं। देवी और भैरव को मदिरा का भोग लगाया जाता है। हनुमान मंदिरों में ध्वजा अर्पित की जाती है। करीब 8 बजे गढ़ कालिका माता मंदिर में पूजन के बाद नजदीक के हांडी फोड़ भैरव मंदिर में पूजा समाप्त होती है।
27 किलोमीटर की यात्रा पैदल होती है, पूरा करने में लगते हैं 15 घंटे
लगभग 27 किलोमीटर की यात्रा पैदल ही पूरी की जाती है। यह सुबह 8 बजे से शुरू होकर रात करीब 7.30 बजे खत्म होती है। इसमें करीब 15 घंटे का समय लगता है। नगर पूजा दल के सहायकों द्वारा निर्धारित मार्ग पर पैदल चलते हुए मंदिरों पर सबसे पहले सिंदूर लगाया जाता है। उसके बाद देव स्थान की पूजा और आरती कर यात्रा अगले मंदिर के लिए बढ़ जाती है।
राजा विक्रमादित्य भी करते थे नगर पूजा
• नगर पूजा के दौरान शासकीय दल ढोल-बैंड बजाते हुए 27 किलोमीटर के दायरे में आने वाले मंदिरों में पूजा करता है।
• इन मंदिरों में चामुंडा माता, भूखी माता, काल भैरव, चंडमुंड नाशिनी, भैरव, और हनुमान मंदिर शामिल हैं।
• भैरवजी को भी मदिरा का भोग लगाया जाता है।
• मान्यता है नगर की सुरक्षा व सुख समृद्धि की कामना से सम्राट विक्रमादित्य नगर पूजा किया करते थे। बाद में सिंधिया स्टेट की ओर से इस परंपरा का निर्वहन किया जाता था।
• आजादी के बाद शासन की ओर से प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर नगर पूजा कराई जाती है।
• चैत्र नवरात्र की महाअष्टमी पर नगर पूजा की परंपरा कुछ वर्षों पहले निरंजनी अखाड़े की ओर से शुरू की गई है।
सरकारी अमला ढोल बजाते निकलता है पूजन के लिये
• नगर पूजा में सबसे आगे सिंदूर लगाने वाला एक व्यक्ति चलता है।
• आठ फीट बांस पर लाल ध्वज लिए पीछे दूसरा व्यक्ति होता है।
• यात्रा के दौरान ढोल बजाने वाले 6 व्यक्ति ।
• बलबाकल उठाने व मदिरा की धारा वाला एक व्यक्ति।
• अन्य सामग्री उठाने वाले 15 कोटवार।
• एक दर्जन से अधिक राजस्व अधिकारी और कर्मचारी। कस्बा पटेल, स्काउट गाइड और सैनिक। लगभग 50 गणमान्य नागरिक नगर पूजा यात्रा दल में शामिल होते हैं।
इन 40 मंदिरो में होती है पूजा
• चौबीस खंबा मंदिर (चौबीस मातृका)
• महालया मंदिर
• अर्द्धकाल भैरव
• कालिका माता- (दक्षिण दिशा महाकाली)
• खूंटपाल देव भैरव
• चौसठ योगिनी मंदिर
• भैरव मंदिर खूंटपाल
• खूंट देव भैरव
• लाल बाई
• फूल बाई
• शतचण्डी देवी (शांभवी माता)
• शतचण्डी (वैष्णवीदेवी)
• शतचण्डी (दुर्गा कॉलोनी)
• राम केवट हनुमान
• खूटपाल भैरव
• नगरकोट की महारानी
• मां नाकेवाली दुर्गा मंदिर
• खूंटपाल भैरव
• खूंटदेव भूतनाथ, बटुक भैरव
• बिजासन मंदिर
• चामुण्डा माता
• पदमावती माता
• देवास गेट भैरव मंदिर
• इंदौर गेट वाली माता
• ठोकरिया भैरव
• खूंटदेव भैरव (हरिफाटक ओवर ब्रिज के कोने पर)
• खूंटदेव भैरव
• इच्छामन माता
• भूखी माता
• सती माता
• खूंटदेव भैरव
• कोयला मसानी भैरव
• गणगौर माता (गणगौर दरवाजा के द्वार पर)
• गणगौर माता- (गणगौर दरवाजा के उत्तर में)
• श्मशान भैरव
• सत्ता देव
• आशा माता
• आज्ञा वीर बेताल भैरव
• गढ़कालिका
• हांडीफोड़ भैरव