देशव्यापी लैंड पुलिंग कानून हो पूरी तरह समाप्त
दो दिवसीय अखिल भारतीय विद्वत संगोष्ठी में चिंतन व चर्चा उपरांत लैंड पुलिंग कानून पर जारी हुआ ’’उदयपुर डिक्लेरेशन’’

उज्जैन। देश के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह देश भर में लैंड पुलिंग कानून (भूमि अधिग्रहण कानून) में एकरूपता लाए और किसान विरोधी ‘लैंड पुलिंग’ एक्ट को पूरी तरह समाप्त करे।
किसान संघ के थिंक टैंक कहे जाने वाले भारतीय एग्रो इकानामिक रिसर्च सेंटर (BAERC) के बैनर तले राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय विद्वत संगोष्ठी में गहन चिंतन और चर्चा के बाद ‘उदयपुर डिक्लेरेशन’ जारी किया गया। इसमें ब्रिटिश काल से चले आ रहे भूमि अधिग्रहण कानून की विसंगतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार को 15 सूत्रीय सुझावों का एक विस्तृत मांग पत्र भेजा गया है।
चिंता का विषय: किसान हित की अनदेखी
बीएईआरसी के अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रमोद चौधरी ने जानकारी देते हुए बताया कि संगोष्ठी में भारतीय किसान संघ, वनवासी कल्याण आश्रम और भारतीय अधिवक्ता परिषद सहित 12 राज्यों के किसान प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस चर्चा में पाया गया कि 2013 में नया कानून आने के बाद भी राज्य सरकारों ने मनमाने संशोधन करके इसे कमजोर बना दिया है।
देशव्यापी सर्वे में सामने आई भूमि अधिग्रहण कानून की खामियां:
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मुआवजा देरी से या नगण्य: वास्तविक कब्जा लेने के बाद भी किसानों को मुआवजा नहीं मिला या बहुत कम मिला।
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पुनर्वास केवल कागजों में: विस्थापितों को रोजगार, आवास और पुनर्वास की व्यवस्था केवल फाइलों तक सीमित रही।
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बची हुई भूमि का नुकसान: अधिग्रहण के बाद बची हुई भूमि कृषि योग्य नहीं रहती (जैसे पानी में डूबना), लेकिन इसके मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है।
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‘लैंड पुलिंग’ द्वारा छल: ‘लैंड पुलिंग’ जैसे छद्म आकर्षण वाले कानूनों का उपयोग करके भोले-भाले किसानों से कागजी आश्वासनों पर छलपूर्वक स्वीकृति ली गई।
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न्यायिक लड़ाई की मजबूरी: किसानों के पास न्यायिक लड़ाई लड़ने के लिए न तो समय है और न ही पैसा, जिससे वे हताश होकर इसे अपनी नियति मान लेते हैं।
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आर्थिक एवं मानसिक टूटन: योजनाएं समय पर पूरी न होने से किसान आर्थिक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं, जिस पर कोई विचार नहीं किया गया।
उदयपुर डिक्लेरेशन में केंद्र सरकार को भेजे गए 15 मुख्य सुझाव
भारतीय किसान संघ ने कानून में बदलाव के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं:
| क्र.सं. | सुझाव | विवरण |
| 1. | ग्रामसभा की अनिवार्य सहमति | कानून या संशोधन के लिए ग्रामसभा में 80% निवासियों की सहमति अनिवार्य हो, जिसका डिजिटल रिकॉर्ड हो। |
| 2. | मुआवजा दर | मुआवजा वास्तविक बाजार मूल्य या रजिस्ट्री मूल्य (जो अधिक हो) से 4 गुना हो। इसका हर 3 वर्ष में पुनर्मूल्यांकन हो। |
| 3. | पुनर्वास योजना लागू हो | भूमि का कब्जा लेने से पहले R&R (रोजगार एवं पुनर्वास) योजना पूर्ण रूप से लागू हो। जिलेवार ‘पुनर्वास बोर्ड’ बने। |
| 4. | जनजातीय विस्थापन | जनजातीय लोगों के विस्थापन की स्थिति में, उनकी संस्कृति और सामाजिक परिवेश को बचाने के लिए सभी ग्रामवासियों को एक ही जगह नए सम्पूर्ण ग्राम के रूप में पुनर्स्थापित किया जाए। |
| 5. | सिंचित भूमि पर रोक | अत्यंत आवश्यक सार्वजनिक उद्देश्य न होने पर बहुफसली सिंचित भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगे। |
| 6. | बंजर भूमि का उपयोग | वन क्षेत्र की ऊसर भूमि और अन्य बंजर भूमि का सर्वे कर पहले उसका उपयोग किया जाए। |
| 7. | रोजगार की गारंटी | विस्थापित किसानों को प्रशिक्षण देकर रोजगार की गारंटी दी जाए, ताकि उन्हें मजदूरी के लिए मजबूर न होना पड़े। |
| 8. | वार्षिक किराया विकल्प | एकमुश्त मुआवजे के विकल्प के रूप में, किसानों को अधिग्रहित भूमि का प्रति एकड़ वार्षिक किराया प्रचलित दर से प्रतिवर्ष दिया जाए (जैसे आंध्र प्रदेश में ₹40 हजार प्रति एकड़)। जब भी किसान चाहें, तत्कालीन बाजार भाव से 4 गुना मुआवजा दिया जाए। |
| 9. | शेयर होल्डर | किसानों को परियोजना में शेयर होल्डर बनाकर हिस्सेदारी दी जाए। |
| 10. | ‘लैंड पुलिंग’ समाप्त हो | ‘लैंड पुलिंग’ कानून पूरी तरह से समाप्त किया जाए और सार्वजनिक उद्देश्य से अधिग्रहित भूमि का बिल्डर या कंपनी को पुनर्विक्रय पूर्णतः प्रतिबंधित हो। |
| 11. | भूमि वापसी का प्रावधान | अधिग्रहित भूमि का 5 वर्षों में उपयोग न होने पर वह उसी किसान को वापस हो, बिना मुआवजा वापस लिए। |
| 12. | डिजिटल एवं पारदर्शी प्रक्रिया | भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया डिजिटल, पारदर्शी और पब्लिक डोमेन में हो, साथ ही ‘मोबाइल शिकायत एप’ विकसित किया जाए। |
| 13. | नीलामी के तौर पर सौदा | सरकार बोली लगाकर नीलामी के तौर पर किसानों से भूमि खरीद सकती है, लेकिन मूल्य तत्कालीन बाजार भाव के 4 गुना से कम न हो। |
| 14. | कानून में राष्ट्रीय एकरूपता | केंद्र सरकार संविधान संशोधन द्वारा पूरे देश में भूमि अधिग्रहण कानून में एकरूपता लाए, क्योंकि विभिन्न राज्यों के संशोधनों ने मुख्य प्रावधानों को समाप्त कर दिया है। |
| 15. | अधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाही | नियमों का दुरुपयोग कर कार्य करने वाले संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध न्यूनतम समय सीमा (एक वर्ष) में कठोर दंडात्मक कार्यवाही का कानूनी प्रावधान एक्ट में हो। |
बैठक में भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी और भारतीय अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष श्रीनिवास मूर्ति सहित कई प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित रहे।



