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विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की काल गणना त्रुटिरहित

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी उज्जैन में स्थापित है, वैदिक घड़ी अब रिस्ट वॉच और दीवार घड़ी के रूप में भी लांच होगी

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी को विद्वानों ने काल गणना के लिए शुद्ध, त्रुटिरहित, प्रामाणिक एवं विश्वसनीय बताया है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में 17 अक्टूबर गुरुवार को देश-प्रदेश के पंचांग कर्ता एवं वैदिक कालगणना के विद्वान एकत्रित हुए।

प्राचीन भारतीय कालगणना में वैदिक परम्परा विषय पर उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के सभागार में संगोष्ठी आयोजित हुई। जिसमें पंचांगकर्ता, खगोलविद, वैज्ञानिक, अध्येता एकत्रित हुए। संगोष्ठी में विद्वानों ने विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की गणना को लेकर सर्वसम्मिति से कहा कि भारतीय कालगणना विश्व की प्राचीनतम, सूक्ष्म, शुद्ध, त्रुटिरहित, प्रामाणिक एवं विश्वसनीय पद्धति है।

उज्जैन में स्थापित है वैदिक घड़ी

काल/परिमाण की इस सर्वाधिक विश्वसनीय पद्धति का पुनरस्थापन विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के रूप में उज्जैन में किया गया है। मुहूर्त, घटी, पल, कास्ता, प्रहर, दिन-रात, पक्ष, अयन, सम्वत्सर, दिव्यवर्ष, मन्वन्तर, युग, कल्प, ब्रम्हा वैदिक घड़ी के मुख्य आधार है। इस घड़ी को वैदिक काल गणना के समस्त घटकों को समवेत कर बनाया गया है। इसमें भारतीय पंचांग, विक्रम सम्वत् मास, ग्रह स्थिति, योग, भद्रा स्थिति, चंद्र स्थिति, पर्व, शुभाशुभ मुहूर्त, घटी, नक्षत्र, जयंती, व्रत, त्यौहार, चौघडिय़ा, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, आकाशस्थ, ग्रह, नक्षत्र, ग्रहों का परिभ्रमण समाहित है।

यह मौजूद थे संगोष्ठी में

  • मुख्य अतिथि – विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरू प्रो. बालकृष्ण शर्मा।
  • विशेष अतिथि – पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, विक्रम विश्वविद्यालय के वरिष्ठ कार्यपरिषद सदस्य राजेश कुशवाह, अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर के निदेशक डॉ. आरसी ठाकुर थे।
  • अतिथिगण- वरिष्ठ ज्योतिर्विद पं. आनंद शंकर व्यास, महामण्डलेश्वर मदन व्यास उज्जैन, डॉ. निलिम्प त्रिपाठी भोपाल, पं. कैलाशपति नायक, अशोक नगर, पं. भागीरथ जोशी नीमच, ज्योतिषाचार्य अर्चना सरमण्डल उज्जैन।
  • मुख्य वक्ता – आरोह श्रीवास्तव, वैदिक घड़ी प्रणेता, लखनऊ।
  • अध्यक्षता – प्रो. अर्पण भारद्वाज, कुलगुरु, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन।
  • संचालन- डॉ. प्रीति पाण्डे, प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन।
  • आभार-वरिष्ठ कवि दिनेश दिग्गज द्वाराकिया गया।
  • विषय विस्तारक- डॉ. रमन सोलंकी, पुराविद्, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा किया गया।

वैदिक घड़ी अब रिस्ट वॉच और दीवार घड़ी के रूप में भी लांच होगी

वैदिक घड़ी की एक नहीं बल्कि कई खासियतें हैं। इस घड़ी में ग्राफिक्स का भी इस्तेमाल किया गया है। हर घंटे में अलग-अलग तस्वीरें इस घड़ी में दिखाई देगी। साथ ही देश व दुनिया भर में सूर्यास्त और सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण को भी इसमें दर्ज किया जाएगा और लोगों तक उसकी जानकारी पहुंचेगी। इस घड़ी का उपयोग मोबाइल ऐप के जरिए लोग अपने फोन में भी कर सकते हैं। साथ ही अगर घड़ी में किसी तरह का बदलाव होता है तो वो आपके मोबाइल ऐप पर भी देखने को मिलेगा। वर्तमान में प्रचलित घड़ी मेकेनिकल होने से दिन व रात को बराबर 12-12 घण्टों में बाँटती है परन्तु वास्तव में सम्पूर्ण विश्व में दिन व रात एक जैसे नहीं होते हैं। सूर्य उदय के समयानुसार हर शहर का दिन-रात का समय अलग-अलग होता है यह वैदिक घड़ी सूर्य सिध्दान्त पर कार्य करती है। सूर्योदय से समय की गणना करती है दिन भर के 15 मुहूर्त व रात्रि के 15 मुहूर्त दर्शाती है। इसे भविष्य में शीघ्र ही मोबाइल एप रिष्टवॉच (कलाई घड़ी) दीवार घड़ी के रूप में लाँच किया जावेगा।

48 मिनट का एक घंटा तय, घड़ी का उपयोग मोबाइल ऐप के जरिये भी

वैदिक घड़ी के प्रणेता लखनऊ निवासी आरोह श्रीवास्तव ने बताया कि इसी को ध्यान में रखते हुए वैदिक घड़ी को बनाया गया है। 30 घंटे वैदिक घड़ी वैदिक गणित के आधार पर काम करती है और घड़ी से मुहूर्त भी देख सकेंगे। इस घड़ी को मोबाइल ऐप से भी संचालित किया जा सकता है। वैदिक घड़ी प्राचीन भारतीय समय निर्धारण प्रणाली के आधार पर 30 मुहूर्त दर्शाती है। 30 मुहूर्त को 30 काल और 30 काष्ठ में विभाजित किया गया है। 30 मुहूर्त लगातार 2 सूर्योदयों के बीच का समय अंतराल (1 दिन और रात) 1 मुहूर्त बराबर 30 कला (वर्तमान समय प्रणाली में लगभग 48 मिनट) 1 कला बराबर 30 काष्ठ (लगभग 96 सेकंड) 1 काष्ठ बराबर लगभग 3200 मिली सेकंड ।लगातार 2 सूर्योदयों के मध्य की समयावधि परिवर्तनशील होती है जिसके कारण वैदिक घड़ी वर्तमान 24 घंटों में 30 मुहूर्त 30 काल 30 काष्ठ रूपांतरण होता है। 24 घंटों में वैदिक समय प्रणाली अनुमानित है।

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