मायोपिया का शिकार हो रहे बच्चे, मोबाइल की लत के कारण सूर्य-चंद्रमा की रोशनी से बना रहे दूरी, अब यह बनी महामारी
मायोपिया से ग्रसित:6 हजार बच्चों पर एम्स ने की स्टडी, आधे से अधिक को दूर का भी साफ नहीं दिखता

मायोपिया myopia यानी दृष्टिदोष। इसमें दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं, जबकि पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती हैं. यह एक अपवर्तक त्रुटि है, जिसका अर्थ है कि आंखें प्रकाश को सही ढंग से फोकस नहीं कर पाती हैं। मायोपिया तब होता है जब आंखें लंबी हो जाती हैं या कॉर्निया (आंख का बाहरी पारदर्शी भाग) का आकार बहुत अधिक घुमावदार हो जाता है. इन परिवर्तनों के कारण, प्रकाश किरणें रेटिना (आंख के पीछे की परत) पर केंद्रित होने के बजाय रेटिना से पहले केंद्रित हो जाती हैं, जिससे दूर की वस्तुएं धुंधली दिखती हैं। यह रोग हमारे बच्चों में तेजी से फैल रहा है। यह समस्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इस साल मायोपिया अवेयरनेस वीक (19 से 25 मई) के लिए थीम ‘स्क्रीन डाउन, आइज अप’ रखी गई है। इसे अब महामारी का नाम दिया गया है।
नेचुरल लाइट से दूरी के कारण बन रही है यह स्थिति
नेचुरल लाइट यानी सूर्य और चांद की रोशनी के नीचे अब लोगों का समय कम बीत रहा है। ऐसे में उन्हें दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देने लगी हैं। इस रोग को मायोपिया कहा जाता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति मोबाइल, लैपटॉप और टीवी को छोड़कर घर से बाहर खुले आसमान के नीचे समय बिताए।
सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित, अब यह महामारी, 2050 तक हर दूसरा बच्चा होगा ग्रसित
एम्स भोपाल के नेत्र रोग विभाग द्वारा हाल ही में पांच साल तक की गई एक केस स्टडी सामने आई है कि मायोपिया से सबसे अधिक प्रभावित बच्चे हो रहे हैं। केस स्टडी में नेत्र रोग से पीड़ित 6,000 बच्चों पर अध्ययन किया गया। इनको आंखों से जुड़ी समस्या थी। इन बच्चों में से 47% बच्चों को मायोपिया था। यही नहीं, अब इस रोग को ‘मायोपिया एपिडेमिक’ यानी महामारी का नाम भी दिया गया है। विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है कि यदि जल्द सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो साल 2050 तक हर दूसरा बच्चा इससे ग्रसित होगा। 2019 में मायोपिया के बढ़ते मामलों को देखते हुए अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थैल्मोलॉजी ने ‘मायोपिया टास्क फोर्स’ का गठन किया। इसके प्रमुख डॉ. रिचर्ड एल. एबॉट और डॉ. डोनाल्ड टैन थे। टीम में दुनियाभर के नेत्र विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और अन्य संस्थाएं शामिल थीं। उनका मानना है कि मायोपिया को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2010 में दुनिया की 28% आबादी मायोपिया से ग्रसित थी। अनुमान है कि 2050 तक यह आंकड़ा 50% तक पहुंच सकता है। पूर्वी एशिया में यह दर 90% तक जा सकती है।
शादियों में नाइट्रोजन धुएं का बादल खतरनाक, बच्ची की ले ली जान
बीमारी के कारण रूक रहा बच्चों की आंखों का विकास
मध्यप्रदेश के भोपाल के एम्स के नेत्र रोग विभाग की प्रमुख डॉ. भावना शर्मा ने अपने अध्ययन में बताया कि आज हर घर में बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और टीवी के सामने अधिक समय बिता रहे हैं। इसके कारण उनकी आंखों का वह विकास रुक रहा है, जो सामान्य रूप से 18 साल तक होता है। आंखों की मांसपेशियां दूर और पास देखने के लिए अपनी स्थिति बदलती हैं। जब आंखों में तेज रोशनी पड़ती है तो पुतली सिकुड़ती है। लेकिन अब लंबे समय तक पास की चीजों को देखने और कृत्रिम रोशनी में रहने के कारण आंखों की मांसपेशियां एक ही स्थिति में फिक्स हो रही हैं, जिससे मायोपिया की समस्या बढ़ रही है।
बाहर खुले में खेलना है समस्या का निदान
नेत्र रोग विभाग की प्रमुख डॉ. भावना शर्मा ने अपने अध्ययन में बताया कि जब हम सुबह या शाम की रोशनी में बाहर खेलते हैं, तो यह आंखों के लिए सबसे अनुकूल समय होता है। इसमें न रोशनी बहुत तेज होती है और न ही बहुत कम, जिससे आंखों की मांसपेशियों पर कम दबाव पड़ता है। बाहर खुले में बच्चों को निकलना मायोपिया से बचाने का बहुत कारगर उपाय है।
3 तरह का होता है मायोपिया
डॉ. शर्मा के अनुसार मायोपिया मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है – माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर। माइल्ड और मॉडरेट मायोपिया को चश्मे और कुछ उपचारों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। वहीं, सीवियर मायोपिया में रेटिना पर असर पड़ता है, जिससे रेटिना में छेद हो सकता है या वह अपनी जगह से खिसक सकता है। ऐसी स्थिति में सर्जरी ही एकमात्र उपाय बचता है।
मायोपिया चुपचाप आने वाली गंभीर स्वास्थ्य चुनौती
ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजिकल सोसाइटी (AIOS) के महासचिव डॉ. संतोष होनावर के अनुसार मायोपिया चुपचाप एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है। यह केवल चश्मे तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे रेटिनल डिजनरेशन, ग्लूकोमा, मायोपिक डिजनरेशन और अंधेपन जैसी जटिलताएं हो सकती हैं।
मायोपिया के लक्षण
- दूर की वस्तुओं को देखने में कठिनाई
- दूर की वस्तुएं धुंधली या अस्पष्ट दिखना
- पढ़ने या लिखने के लिए अपनी आँखों को करीब ले जाना
- दूर की वस्तुओं को देखने के लिए आँखें सिकोड़ना
मायोपिया का उपचार
- मायोपिया को चश्मे, कॉन्टैक्ट लेंस या सर्जरी से ठीक किया जा सकता है. मायोपिया की प्रगति को धीमा करने के लिए बच्चों में विशेष उपचार भी उपलब्ध हैं.
मायोपिया से बचाव
- बचपन में आंखों की नियमित जांच
- स्क्रीन के समय को सीमित करना
- पर्याप्त प्राकृतिक रोशनी में समय बिताना
- पढ़ने या लिखने के दौरान उचित दूरी बनाए रखना