पं. प्रदीप मिश्रा की अपील का उमा भारती पर असर

पूर्व सीएम ने ऐलान किया- सोमवार को रायसेन किले के मंदिर में जलाभिषेक कर राजा पूरणमल और उनके बीवी-बच्चों का तर्पण करूंगी
समाचार आज ।
भागवत भूषण पं. प्रदीप मिश्रा के आह्वान का असर दिखना शुरू हो गया है। रायसेन मेें कथा के दौरान उन्होंने शहर की जनता सहित प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र से अपील की थी कि किले में कैद भोलेनाथ को आजाद किया जाय। पं. मिश्रा की अपील का असर सीएम और गृह मंत्री पर हुआ या नहीं यह तो कोई नहीं जानता लेकिन उमा भारती जरूर जागृत हो गई हैं। उन्होंने ऐलान किया कि वे 11 अप्रैल को रायसेन के शिवालय में जाकर जलाभिषेक करेंगी और राजा पूरणमल व उनके बीबी-बच्चों का तर्पण करूंगी।
उमा भारती ने गुरुवार को ट्वीट के जरिए बताया- मान्यता है कि नवरात्रि के बाद के पहले सोमवार को शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। 11 अप्रैल को गंगोत्री से लाए हुए गंगाजल से रायसेन के सोमेश्वर धाम में गंगाजल चढ़ाऊंगी। राजा पूरणमल, उनकी पत्नी रत्नावली, दोनों बेटे व बेटी और सैनिकों का तर्पण करूंगी। अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा मांगूंगी।
उमा भारती ने एक के बाद एक कई ट्वीट करते हुए लिखा- मैं शिव जी के किसी सिद्ध स्थान को तलाश ही रही थी ताकि नवरात्रि के बाद के 11 अप्रैल सोमवार को गंगोत्री से लाए हुए गंगाजल से अभिषेक करूं। अचानक प्रतिष्ठित कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जी के हवाले से यह जानकारी मिली कि रायसेन के किले में एक ऐसा सिद्ध शिवलिंग है। रायसेन के किले के नाम से ही मेरे अंत: में हूक उठती है। इतिहास में दर्ज है कि किस तरह से रायसेन के राजा पूरणमल शेरशाह सूरी के विश्वासघात के शिकार हुए। किले के चारों तरफ घेरा डालकर शेरशाह सूरी ने राजा पूरणमल से संधि कर ली, फिर उनके परिवार और उनके सहायकों के टेंट को शेरशाह सूरी ने अपने अफगान सैनिकों के साथ घेर लिया। रात में राजा पूरणमल को घेर कर मार डाला। राजा पूरणमल बहुत बहादुरी से लड़े, मरने से पहले उन्होंने पत्नी रानी रत्नावली के अनुरोध पर उनकी गर्दन काट दी, ताकि वह वहशियों के शिकंजे में न आ पाएं, लेकिन दो मासूम बेटे और अबोध कन्या टेंट में एक कोने में दुबक गए, जहां से उनको इन वहशियों ने खींचकर निकाला। दोनों मासूम बेटे वहीं काट दिए गए। राजा पूरणमल की अबोध कन्या वैश्यालय को सौंप दी। वहां वह दुर्दशा का शिकार होकर मर गई। जब भी मैं रायसेन के किले के आसपास से गुजरी, यह प्रसंग मुझे याद आता था। बहुत दु:खी और शर्मिंदा होती थी।
उमा भारती ने आगे लिखा- जब डॉ. प्रभुराम चौधरी के चुनाव प्रचार में मैंने और शिवराज जी ने रायसेन में एक साथ सभा की थी, तब मैंने रायसेन के किले की ओर देखते हुए यह बात कही थी कि इस किले को देखकर मुझे बहुत कष्ट होता है। आज जब हमारा भाजपा का झंडा इसके सामने फहरा रहा है, तो कुछ शांति होती है। राजा पूरणमल के साथ हुई घटना नीचता, विश्वासघात और वहशीपन की याद दिलाती है। मुझे अपने इस अज्ञानता पर शर्मिंदगी है कि मुझे उस प्राचीन किले में सिद्ध शिवलिंग होने की जानकारी नहीं थी। मैंने अपने कार्यालय से कल कहा था कि रायसेन जिला प्रशासन को 11 अप्रैल, सोमवार को मेरे वहां जल चढ़ाने की सूचना दें। जब मैं 11 अप्रैल, सोमवार को उस सिद्ध शिवलिंग पर गंगोत्री से लाया हुआ गंगाजल चढ़ाऊंगी तब राजा पूरणमल, उनकी पत्नी रत्नावली, उनके मार डाले गए दोनों मासूम बेटे एवं वहशी दुर्दशा की शिकार होकर मर गई अबोध कन्या एवं उन सब के साथ मारे गए राजा पूरणमल के सैनिक उन सबका मैं तर्पण करूंगी एवं अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा मांगूंगी।
क्या है पूरा मामला

पंडित प्रदीप मिश्रा ने रायसेन किले के मंदिर में लगे ताले को लेकर सोमवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री पर तंज कसा था। उन्होंने कहा था कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज हैं और उनके राज्य में शिव कैद में हैं, तो राज्य किसी काम का नहीं है। साथ ही उन्होंने रायसेन के लोगों को धिक्कारते हुए कहा था कि शिव मंदिर में ताला डाला है और तुम दिवाली मना रहे हो। अरे.. आसपास कोई तालाब हो तो चुल्लू भर पानी भरकर ले आओ।

रायसेन किले के सोमेश्वर महादेव का इतिहास
किले में स्थित भोलेनाथ के मंदिर को सोमेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह फिलहाल पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। रायसेन किले में 800 फीट ऊंचाई पर बने सोमेश्वर धाम मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच हुआ था। इसे परमारकालीन राजा उदयादित्य ने बनवाया था। उस दौर में राजघराने की महिलाएं मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थीं। मंदिर में भगवान शंकर के 2 शिवलिंग स्थापित हैं। सन् 1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित रहा। इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया। उसके शासनकाल में यहां से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई, लेकिन गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति सहित अन्य चिन्ह स्थापित रहे। इससे यह स्पष्ट साबित होता है कि यह मंदिर है। आजादी के बाद से सन् 1974 तक मंदिर पर ताले लगे रहे। फिर उस दौरान एक बड़ा आंदोलन हुआ था। जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता प्रकाशचंद सेठी ने खुद मंदिर के ताले खुलवाए थे। उस दौरान केके अग्रवाल यहां के कलेक्टर थे। आंदोलन के बाद से मंदिर के पट साल में एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं। इस दिन यहां मेले का आयोजन भी होता है। मंदिर की चाबी पुरातत्व विभाग के पास ही रहती है, लेकिन महाशिवरात्रि के दिन सुबह 5 बजे एसडीएम, तहसीलदार सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के सामने मंदिर के पट पर लगे ताले खोले जाते हैं। मेले में आने वाले श्रद्धालु दिन भर मंदिर में दर्शन करते हैं। फिर शाम 5 बजे प्रशासनिक अधिकारियों के सामने ही मंदिर में दोबारा ताले लगा दिए जाते हैं। महाशिवरात्रि के अलावा अन्य दिनों में यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के दर्शन ताले लगे गेट के बाहर से ही करते हैं। मन्नत मांगने आए लोग मंदिर के दरवाजे पर कलावा और कपड़ा बांधते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद वह कपड़ा खोलकर जाते हैं।