मध्यप्रदेश

माता पिता ने खोया पुत्र और बहू, ऑनलाइन गेम ने उजाड़ी जिंदगी  

ऑनलाइन गेमिंग: युवा भारत जनसंख्या वाले देश के लिए एटम बम

जहाँ ऑनलाइन गेमिंग मज़ेदार लगती है, वहीं इसका दूसरा चेहरा इतना अच्छा नहीं है। घंटों स्क्रीन पर चिपके रहना, पढ़ाई और काम से ध्यान भटकना, और कई बार पैसों का नुकसान तक—ये सब गेमिंग के साइड इफेक्ट्स हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं।

पढ़िए  पॉपुलेशन साइंस एक्सपर्ट डेवलेपमेंट पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट  डॉ एन.पी. गांधी के विचार-

ऑनलाइन गेमिंग आजकल बच्चों, युवाओं, पति-पत्नी और बड़ी संख्या में छात्रों में एक आम आदत बनती जा रही है। स्मार्टफोन की आसान उपलब्धता, सस्ता इंटरनेट और हजारों आकर्षक गेमिंग ऐप्स के चलते मोबाइल गेमिंग का चलन हर वर्ग में फैल गया है।

कई बच्चे 6-8 घंटे तक मोबाइल गेम्स में लगे रहते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई, सामाजिकता और शारीरिक स्वास्थ्य पर सीधा असर हो रहा है।युवाओं में मोबाइल गेमिंग की लत के कारण मानसिक तनाव, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन और अवसाद जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। पति-पत्नी के बीच भी गेमिंग की वजह से आपसी संवाद और पारिवारिक समय कम हुआ है, जिससे रिश्तों में तनाव देखने को मिलता है।

छात्रों के लिए ऑनलाइन गेमिंग समय की बर्बादी का बड़ा माध्यम बन गया है, जिससे उनके अध्ययन, करियर और मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.ऑनलाइन गेमिंग आजकल एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है, खासकर युवाओं और बच्चों के लिए।

कोटा के खेड़ा रामपुर गांव की घटना और नया कानून

हाल ही में कोटा के खेड़ा रामपुर गांव में एक दंपत्ति के आत्महत्या की घटना ने ऑनलाइन गेमिंग के खतरे को फिर से चर्चा में ला दिया। इस दर्दनाक हादसे के बाद केंद्र सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग विधेयक 2025 पास किया है, जिसका उद्देश्य ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों को नियंत्रित करना और समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

मोबाइल रेडिएशन के वैज्ञानिक तथ्य और मानसिक दुष्प्रभाव

1. मोबाइल रेडिएशन का प्रभाव📱

मोबाइल फ़ोन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (EMR) उत्पन्न करते हैं, जो लंबे समय तक संपर्क में रहने पर शरीर की जैविक प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट्स के अनुसार:

रेडिएशन का असर बच्चों की मस्तिष्क प्रणाली पर अधिक होता है, जिससे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और व्यवहार संबंधी समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है।

एक्सपोजर से तनाव हार्मोन Cortisol का स्तर बढ़ता है, जिससे मानसिक तनाव बढ़ सकता है।

EMR की लम्बी अवधि तक मौजूदगी से सिरदर्द, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी और डीप्रेशन की शिकायत बढ़ सकती है।

2. मोबाइल गेम, स्ट्रीमिंग, पोर्न आदि के मानसिक परिणाम

अधिक समय तक मोबाइल गेम, नेटफ्लिक्स, पोर्नोग्राफी आदि में व्यस्त रहना।

डोपामीन रिलीज की असामान्यता: गेमिंग व स्ट्रीमिंग के दौरान डोपामीन हार्मोन लगातार रिलीज होता है, जिससे व्यक्ति को क्षणिक आनंद तो मिलता है, लेकिन बाद में मस्तिष्क अपनी प्राकृतिक आनंद क्षमता खोने लगता है। यही लत, निराशा व सुस्ती का कारण बनती है।

इंटरनेट/मोबाइल एडिक्शन डिसऑर्डर: यह साइकेट्रिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति आत्मनियंत्रण खो देते हैं और अवसाद, चिंता व सामाजिक अलगाव का शिकार हो जाते हैं.

सामाजिक व भावनात्मक अलगाव: ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने से वास्तविक जीवन में पारिवारिक, मित्रतापूर्ण और समाजिक संबंध कमजोर होते हैं।

👾आत्महत्या की प्रवृत्ति: मानसिक अवसाद, लगातार हार और परिवार की निराशा के कारण कुछ मामलों में व्यक्ति आत्महत्या जैसे चरम कदम भी उठा लेते हैं.

3. महामारी के बाद मोबाइल रेडिएशन, मानसिक तनाव और सुसाइड दर

कोविड महामारी के बाद भारत सहित विश्वभर में मोबाइल व डिजिटल कंटेंट की खपत तीव्र बढ़ी। साइंटिफिक डेटा के मुताबिक गेमिंग व स्ट्रीमिंग की लत से जुड़े साइकोलॉजिकल केस व सुसाइड की घटनायें भी अधिक सामने आई हैं। WHO व अन्य स्वास्थ्य संस्थाओं ने बच्चों व युवाओं के स्क्रीन टाइम को 2 घंटे से अधिक न करने, नियमित ब्रेक लेने और रचनात्मक गतिविधियों में समय देने की सलाह दी है।

🫵महत्वपूर्ण बिंदु:

ऑनलाइन गेमिंग की लत: ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण युवाओं और बच्चों में मानसिक तनाव, अवसाद और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

आर्थिक नुकसान: ऑनलाइन गेमिंग में हारने से आर्थिक नुकसान हो रहा है, जिससे कई परिवार परेशान हैं।

नया कानून: ऑनलाइन गेमिंग विधेयक 2025 के तहत ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों को नियंत्रित करने और गलत गतिविधियों को रोकने के लिए प्रावधान किए गए हैं।

सरकार की पहल: सरकार ने इस विधेयक को पास करके एक बड़ा कदम उठाया है, जिससे समाज को ऑनलाइन गेमिंग के खतरों से बचाया जा सके।

समाज की जिम्मेदारी: अब समाज की जिम्मेदारी है कि वह इस कानून को सफल बनाने में सरकार का साथ दे और युवाओं और बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग के खतरों से बचाए।

युवा मैनेजमेंट विश्लेषक पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट,एक्जीक्यूटिव मेंबर रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया , एलुमनाई ऑफ इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज मुंबई विश्विद्यालय डॉ नयन प्रकाश गांधी का मानना है कि नव स्वर्णिम अखंड आगामी विकसित भारत को सुरक्षित, स्वस्थ और जागरूक रखने की दिशा में केंद्र सरकार सभी आवश्यक कदम उठा रही है।

यह विधेयक बच्चों की सुरक्षा, युवाओं की सही दिशा, परिवारों की खुशहाली और समाज के बेहतर भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।

डॉ गांधी का कहना है कि “ऑनलाइन गेमिंग विधेयक 2025 भारत में डिजिटल नागरिक सुरक्षा की दिशा में मील का पत्थर है। यह न केवल हमारे बच्चों और युवाओं को हिंसात्मक और गैर-जिम्मेदार गेमिंग गतिविधियों से बचाएगा, बल्कि परिवारों को आर्थिक और मानसिक सुरक्षा भी देगा।”

औसतन 35% युवा मानसिक तनाव, अवसाद या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिसका कारण मोबाइल और गेमिंग की अत्यधिक लत है।WHO की रिपोर्ट के अनुसार, गेमिंग डिसॉर्डर एक मानसिक बीमारी की श्रेणी में रखा गया है।2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 7 करोड़ लोग नियमित तौर पर ऑनलाइन गेमिंग करते हैं।

2019-2024 के बीच ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े मामलों में आर्थिक नुकसान 1,000 करोड़ रुपए से अधिक आँका गया।2019-2023 में 200 से अधिक आत्महत्या के मामले सीधे तौर पर ऑनलाइन गेमिंग या आर्थिक विवशता से जुड़े पाए गए।

विधेयक के प्रावधान, जैसे गेमिंग कंपनियों की मॉनिटरिंग, खिलाड़ियों की आयु सत्यापन, और वित्तीय लेन-देन पर निगरानी, समाज को नई सुरक्षा देंगे।

👾गेमिंग का दुष्प्रभाव

 

बच्चों पर प्रभाव:

बच्चे, जो सीखने और मानसिक विकास की अवस्था में हैं, डिजिटल गेमिंग की लत के कारण अतिमानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, आँखों की बीमारियाँ, सामाजिक अलगाव जैसी समस्याओं का सामना करते हैं। कई बच्चे 6-8 घंटे तक मोबाइल पर समय बिताते हुए अपने अध्ययन और सेहत को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

युवाओं पर प्रभाव:

युवा वर्ग में मोबाइल गेमिंग एवं सोशल मीडिया की लत के कारण नींद पूरी न होना, अवसाद, आक्रोश, सामाजिकता में कमी, ऑनलाइन फ्रॉड एवं आर्थिक नुकसान जैसी समस्याएँ सामने आई हैं। कई युवा हार कर खुदकुशी की ओर भी बढ़ जा रहे हैं।

बुजुर्गों पर प्रभाव:

बुजुर्ग भी आजकल मोबाइल गेमिंग एवं सोशल मीडिया में समय बर्बाद करते हुए अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। उनकी आँखों की रोशनी, मानसिक शांति और पारिवारिक बातचीत में गिरावट देखी गई है।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ

आँखों की कमजोरी, माइग्रेन, गर्दन एवं पीठ दर्द

अनिद्रा एवं डिप्रेशन,स्वस्थ जीवनशैली में बाधा, मोटापा,बच्चों-युवाओं में आक्रामकता एवं सामाजिक अलगाव,लंबे समय तक मोबाइल/गेमिंग से जुड़े रहने पर मानसिक बीमारियाँ

👉मोबाइल गेमिंग इंडस्ट्री की पृष्ठभूमि: तथ्य और आंकड़े

भारत में मोबाइल गेमिंग इंडस्ट्री का वैल्यू 2022 में ₹13,500 करोड़ पहुँच गया था और वित्त वर्ष 2024 तक ₹22,000 करोड़ का अनुमान है। देश में करीब 7 करोड़+ लोग ऑनलाइन गेमिंग करते हैं और गूगल के आंकड़ों के अनुसार हर महीने 1.2 अरब+ गेमिंग ऐप्स डाउनलोड होते हैं।

यह इंडस्ट्री हर वर्ग के बच्चों और युवाओं के लिए जैसे ‘परमाणु बम’ बन गई है – जिसमें अदृश्य लत, मानसिक-शारीरिक नुकसान और सामाजिक विघटन छिपा है। विशाल मार्केटिंग बजट, सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट और नए-नए गेमों की भरमार ने बच्चों के बचपन और युवाओं का भविष्य सीधे खतरे में डाल दिया है.

समाज और वैश्विक संस्थानों की खोजी रिपोर्ट📜

WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने 2019 में ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ को मानसिक बीमारी की श्रेणी में रखा है। PMC.NCBI.NLM.NIH.GOV की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, गेमिंग डिसऑर्डर से आत्महत्या और मानसिक तनाव के केस भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं. राजस्थान के सरकारी रिकॉर्ड अनुसार, 2023-2025 में खेल लत से जुड़े आत्महत्या और भारी आर्थिक नुकसान के दर्जनों मामले सामने आए हैं, और विशेषज्ञों ने इसे ‘साइलेंट महामारी’ बताया है.

United Nations और WHO के शोध में स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चे और युवा अवसाद, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, पारिवारिक विघटन और आत्महत्या जैसे ‘सोशल इमरजेंसी’ का सामना कर रहे हैं। राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हाईप्रोफाइल केस और बड़े आर्थिक नुकसान अब सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुके हैं.

डॉ. नयन प्रकाश गांधी का कहना

“ऑनलाइन गेमिंग विधेयक 2025 भारत में डिजिटल नागरिक सुरक्षा की दिशा में मील का पत्थर है। यह न केवल हमारे बच्चों और युवाओं को हिंसात्मक और गैर-जिम्मेदार गेमिंग गतिविधियों से बचाएगा, बल्कि परिवारों को आर्थिक और मानसिक सुरक्षा भी देगा।”

🫵नए कानून से गेमिंग कंपनियों की सख्त मॉनिटरिंग, आयु सत्यापन, वित्तीय निगरानी और कंटेंट नियंत्रण होगा, जिससे बच्चों-युवाओं को इस लत और आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकेगा। समाज, स्कूल, परिवार मिलकर जागरूकता फैलाएँ – यही डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य की नई प्राथमिकता है।

क्या बदलेगा?

नए कानून के बाद ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों पर लगाम लगेगी, जिससे युवाओं और बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग के खतरों से बचाया जा सकेगा। इसके अलावा, सरकार ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की मॉनिटरिंग करेगी और खिलाड़ियों की आयु सत्यापन और वित्तीय लेन-देन पर निगरानी रखेगी।

ग्राउंड रिपोर्टर विनोद गौड के अनुसार खेड़ा रामपुर की घटना ने समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा किया था, जिसका समाधान अब सरकार के साहसिक कदम द्वारा सामने आया है।

ऑनलाइन गेमिंग विधेयक 2025 न सिर्फ युवाओं एवं बच्चों को भविष्य में ऐसे हादसों से बचाएगा, बल्कि मोबाइल व सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को भी नियंत्रित करेगा।

यह विधेयक आधुनिक भारत को सुरक्षित और स्वस्थ रखने की सरकार की संकल्पना का प्रमाण है। नीति-निर्माताओं, समाजशास्त्रियों, डॉक्टरों, माता-पिता और पूरे देश के लिए यह समय है कि वे सहयोग करते हुए इसे सफल बनाएं, ताकि समाज में खुशहाली लौट सके और कोई दीपक राठौड़ एवं उसकी पत्नी जैसी त्रासदी दोहराई न जाए।

Related Articles

Back to top button