उज्जैनमध्यप्रदेश

डूबते का सहारा, आज खुद डूब गया

200 से अधिक जिंदगियां बचाने वाले तैराक अर्जुन कहार की शिप्रा में डूबने से मौत, कलेक्‍टर भी कर चुके हैं सम्‍मानित

समाचार आज @ उज्‍जैन

उज्‍जैन में शिप्रा में अठखेेलिया कर बड़ा हुआ तैराक अर्जुन कहार अब हमारे बीच नहीं रहा। विडंम्‍बना देखिए कि शिप्रा में डूबने से करीब 200 से अधिक लोगों की जान बचाने वाला अर्जुन कहार की मौत भी मां शिप्रा की गोद में हुई है। उज्जैन का अर्जुन कहार शिप्रा तैराक दल का सदस्य था।

मंगलवार 20 जून की शाम को अर्जुन रामघाट पर नहाने गया था। उसी समय उसका पैर नदी में बंधी रस्सी में उलझा और उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। महाकाल थाना पुलिस ने बताया कि अर्जुन पिता अंबूलाल कहार उम 30 वर्ष निवासी नरसिंह घाट कॉलोनी शिप्रा तैराक दल का सदस्य था। जिसने अब तक 200 से अधिक लोगों को रामघाट पर डूबने से बचाया था। मंगलवार शाम को अर्जुन रामघाट पर नहाने गया था। उसी समय उसका पैर नदी में बंधी रस्सी में उलझा और उसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। पूरी घटना की जानकारी बुधवार सुबह उस समय लगी जब अर्जुन की लाश फूलकर नदी के किनारे पर आ गई और नगर निगम के कर्मचारियों ने नदी से लाश मिलने की जानकारी महाकाल थाना पुलिस को दी। इस मामले में शिप्रा तैराक दल के तेजा कहार ने बताया कि पूरी घटना की जानकारी महाकाल थाना पुलिस को दी गई थी, जिसके बाद अर्जुन को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल लाया गया। इस मामले में महाकाल थाना पुलिस ने मर्ग कायम किया है।

कलेक्टर कर चुके हैं सम्मान

परिजनों के अनुसार अर्जुन ने नदी पर अपने सेवाकाल में कई शवों को गोता लगाकर नदी से निकाला तथा कई श्रद्धालुओं को नदी में डूबने से बचाया। इसके चलते गणतंत्र दिवस के अवसर पर कलेक्टर के हाथों उसका सम्मान भी हुआ था। परिजनों के मुताबिक अर्जुन मंगलवार शाम 5 बजे से घर से निकला था और रातभर नहीं पहुंचा। आज सुबह यह खबर आई कि उसकी लाश शिप्रा नदी में तैरती मिली है। पुलिस के मुताबिक संभवत: कल शाम ही अर्जुन शिप्रा नदी में डूब गया था और लगभग 16 घंटे बाद उसकी लाश नदी में मिली। पुलिस ने शव को नदी से निकलवाकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया।

नदी के अंदर लोहे के पोल से खतरा

घटना के दौरान मौके पर मौजूद मृतक अर्जुन के रिश्तेदार नानूराम कहार ने बताया कि गहरे पानी में जाने से लोगों को रोकने के लिए नदी में लोहे के पोल लगाए गए हैं तथा उन पर रस्सी बांधी जाती है। कई बार गोताखोर किसी की जान बचाने के लिए नदी में गोता लगाते हैं तो टूटे हुए पोल और रस्सी के कारण या तो उलझ जाते हैं या फिर चोट लगने से घायल हो जाते हैं।

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