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गर्मी मेें सेहत सुधारने के लिए करें यह प्रयास, नहीं होंगे बीमार

गर्मी मेें सेहत सुधारने के लिए आयुर्वेद महाविद्यालय के प्रो. डॉ. प्रकाश जोशी ने बताया कैसी हो दिनचर्या

गर्मी मेें सेहत बेहतर बनाये रखना चुनौतीपूर्ण है। शीत ऋतु के बाद अब गर्मी का आगाज हो गया है ऐसे में हमें अपनी आदतों और खान-पान में थोड़ा बदलाव करना जरूरी है ताकि सेहत बेहतर बनी रही।

शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के प्रो. डॉ. प्रकाश जोशी और जबलपुर आयुर्वेद कॉलेज की व्याख्याता डॉ. मंजुला मिश्रा ने बताया कि आदान काल में मुख्य रूप से जनवरी से जुलाई तक का समय होता है, जिसमें शिशिर (15 जनवरी-15 मार्च तक समय), वसंत (15 मार्च-15 मई तक) तथा ग्रीष्म (15 मई-15 जुलाई तक का समय) ऋतुएं आती हैं। इस दौरान सूर्य का प्रकाश अधिक तेज होता है और सूर्य के प्रकाश की तीव्रता शिशिर से ग्रीष्म की तरफ जाने पर क्रमश: बढ़ती है। जिसके कारण सबसे अधिक गर्मी हमें मई-जून में महसूस होती है। गरमी अधिक होने के कारण शरीर में स्थित जल कम होने लगता है, जिससे प्यास अधिक लगती है एवं आहार पाचन शक्ति कम होने से भूख कम लगती है तथा कार्य करने की क्षमता (शारीरिक बल) भी कम हो जाती है। इस कारण आचार्यों ने गर्मी के दिनों में हल्का एवं सुपाच्य जो कि मीठा, चिकनाई युक्त हो एवं जलीयांश की अधिकता युक्त हो ऐसा भोजन करने को कहा है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में वात का संचय होता है।

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स्वास्थ्य को केंद्रित रखते हुए ही आयुर्वेदाचायों ने पूरे वर्ष में छह ऋतुएं बनाई

डॉ. जोशी ने बताया कि ऋतु शब्द काल विभाग की ओर संकेत करता है। इसी आधार पर आचार्यों ने पूरे वर्ष को छह ऋतुओं के अंतर्गत समाहित किया है। आयुर्वेदाचार्यों ने इन ऋतुओं को दो भागों में बाँटा है। विसर्गकाल वह समय है, जिसमें वर्षा (जिसमें लगभग 15 जुलाई-15 सितंबर तक समय), शरद (जिसमें लगभग 15 सितंबर-15 नवंबर तक समय) तथा हेमन्त (जिसमें लगभग 15 नवंबर-15 जनवरी तक समय) ऋतुएं आती हैं। इस समय सूर्य की किरणें कम पृथ्वी पर पड़ती हैं और चंद्रमा का प्रकाश अधिक होने के कारण आहार पाचन की शक्ति अच्छी होती है, जिससे शरीर का बल वर्षा ऋतु से हेमन्त की तरफ दिनों दिन बढ़ता जाता है। और हम सभी के कार्य करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा हमें जल्द ही थकान महसूस नहीं होती।

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क्या खायें और क्या नहीं खायें ग्रीष्म ऋतु में

सब्जियाँ- लौकी, परवल, सेम की फली ,पालक, खीरा, तरोई, प्याज, ककड़ी, टमाटर आदि खूब खायें। कटहल, लहसुन, अदरक, सहिजन (मुनगा)की फली, एवं मिर्च मसाले युक्त तीखे एवं चटपटे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

फल – मुख्य रूप से संतरा, मौसंबी, आम, तरबूज, खरबूज सिघाड़ा, मुनक्का अंगूर खसखस कच्चा बिल्व, नारियल आँवला का सेवन करना चाहिए। लकुच (बड़हल), सुपारी, बादाम, शहतूत खजूर को नहीं खायें

पेय पदार्थ – फलों के रस का, कच्चे आम (कैरी) का रस, नारियल पानी, नींबू शरबत, गन्ने का रस, ताड़ी (महुए से बनी शराब), घड़े का ठंडा पानी, घृत मिला हुआ सत्तू का घोल जो न ही अधिक गाढ़ा हो और न ही अधिक पतला, सुगंधित एवं शर्करा मिला हुआ जल, छाछ, दूध, घी आदि मीठे एवं रसीले पदार्थों का सेवन करना चाहिए। चाय, कॉफी आदि गर्म पदार्थों का एवं दही (यदि दही का सेवन करना हो तो शक्कर मिला कर लें) मदिरा तथा बर्फ का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।

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ग्रीष्म ऋतु में इन बातों का भी विशेष ध्यान रखें

  • खाली पेट घर से बाहर न निकलें।
  • घर से बाहर निकलते समय मुँह पर कपड़ा बाँध कर निकलें।
  • प्याज का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए क्योकि प्याज स्निग्ध होता है।
  • वातानुकूलित स्थानों से निकलकर तुरंत धूप में बाहर न निकले, तापमान सामान्य होने पर ही बाहर जाए।
  • धूप से आकर तुरंत ठंडे पानी से अपना शरीर न धोयें थोड़ा आराम करने के पश्चात शरीर साफ करें।
  • त्वचा पर शीतल एवं सुगंधित द्रव्यों का लेप करना चाहिए जैसे चंदन,खस (उशीर)
  • गर्मी के दिनों में शराब का सेवन अधिक हानिकारक होता है तथा ज्यादा व्यायाम भी नही करना चाहिए। यदि करना हो तो भी कम व्यायाम ही करना चाहिए।
  • धूप से आने पर फ्रीज में रखे ठंडे पानी एवं बर्फ का प्रयोग कम करें तथा एक बार में अधिक मात्रा में पानी नहीं पीना चाहिए। इसके सेवन से क्षुधा मन्द होती है तथा बार-बार अधिक ठण्डा पानी पीने से प्यास नहीं मिटती है।
  • एक दिन पूर्व फ्रीज में रखा हुआ भोजन अर्थात् बासी भोजन तथा खुले स्थानों पर मिलने वाले पदार्थों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
  • इस प्रकार यदि हम आहार-विहार संबंधी इन सभी बातों का घ्यान रखते हैं तो ग्रीष्म ऋतु में हम न केवल स्वयं को स्वस्थ रख सकतें हैं बल्कि रोग उत्पन्न होने पर उन्हे बिना किसी औषध के ठीक भी कर सकते हैं।
– हरिओम राय

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