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5 crore cases pending in courts : देश की अदालतों में 5 करोड़ केस पेंडिंग

5 crore cases pending in courts : समाधान : भारतीय न्यायिक व्यवस्था पीड़ित केंद्रित होनी चाहिए

5 crore cases pending in courts : कहते हैं देरी से मिलने वाला न्याय भी अकसर नाइंसाफी की श्रेणी में खड़ा नजर आता है। समय पर जरुरतमंदों को न्याय मिले। इसके लिए सरकार भी काफी प्रयासरत है, लेकिन समय पर इंसाफ की राह फिलहाल आसान नजर नहीं आ रही है। लोकसभा में शुक्रवार 15 दिसंबर को आया कानून मंत्री का बयान स्पष्ट कर रहा है कि देश की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामले मेंडिंग हैं। इनमें से सुप्रीम कोर्ट में 80 हजार, सभी 25 हाईकोर्ट में 61 लाख से ज्यादा मामले हैं। निचली अदालतों की स्थिति और चिंताजनक है। ये मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं अगर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो 1 जुलाई 2023 तक सुप्रीम कोर्ट में 69.76 हजार केस पेंडिंग थे, जो 1 दिसंबर को बढ़कर 80 हजार हो गए। यानी छह महीने में ही 10 हजार मामले बढ़ गये।

एक सवाल के जबाव में देश के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार 15 दिसंबर को लोकसभा में बताया कि देश के सुप्रीम कोर्ट, 25 हाईकोर्ट, डिस्ट्रिक्ट और अधीनस्थ अदालतों में 5 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। कानून मंत्री का कहना है कि 1 दिसंबर तक देशभर की अदालतों में 5 करोड़ 8 लाख 85 हजार 856 केस सुनवाई के लिए बाकी हैं। इनमें से 61 लाख से ज्यादा केस 25 हाईकोर्ट्स में पेंडिंग हैं। 6 महीने में सुप्रीम कोर्ट के पेंडिंग केस 10 हजार बढ़े है।

मौजूदा समय में 80 हजार केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित

देश के कानून मंत्री मेघवाल ने बताया कि मौजूदा समय में 80 हजार केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। छह महीने पहले 1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग केसों की संख्या 69 हजार 766 थी। जो 1 दिसंबर को बढ़कर 80 हजार से ज्यादा हो गई। तीन साल पहले 10 हजार पेंडिंग केस बढ़ने में मार्च 2020 से जुलाई 2023 तक का समय लगा था।

देश में जजों की कुल स्वीकृत संख्या 26 हजार 568

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह भी कहा कि भारतीय न्यायपालिका में जजों की कुल स्वीकृत संख्या 26 हजार 568 है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की फुल स्ट्रेंथ 34 है। वहीं, हाईकोर्ट्स में जजों की संख्या 1,114 है। जिला और अधीनस्थ अदालतों में जजों की स्वीकृत संख्या 25,420 है।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी मामलों की सुनवाई

लोकसभा में कानून मंत्री ने बताया कि साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने 15 जून तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी मामलों की सुनवाई की। इनमें कुल 1 लाख 82 हजार से ज्यादा का निपटारा हुआ। इसके अलावा गुजरात, गुवाहाटी, उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड, पटना और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की है।

जानकारों के मुताबिक पिछड़ने के क्या हैं समाधान

प्रकरणों के पिछड़ने के कारण पर जानकार बताते हैं कि पिछले कुछ दशक में न्याय प्रणाली पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है। इसके लिए हमारी विशाल आबादी भी जिम्मेदारी है। शिकायतकर्ता को अदालत जाने से पहले मामले की गंभीरता पर विचार करना चाहिए और छोटे-छोटे मामलों में कोर्ट केस करने से बचना चाहिए। जिन मामलों में संभव हो, आपसी समझौतों से कोर्ट केस कम किये जा सकते हैं। इस पक्ष यह भी सामने आया है कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था पीड़ित केंद्रित होनी चाहिए, मतलब जो पीड़ित के हितों को ध्यान में रखे। अभी केस दर्ज होने के बाद इंसाफ की प्रक्रिया बहुत लंबी और जटिल है। ट्रायल पूरा होने में ही कई वर्ष लग जाते हैं, ट्रायल के बाद अदालत का फैसला आने में कई और वर्ष लगते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में न्यायधीशों की संख्या बहुत कम है, जबकि प्रत्येक स्तर पर जजों के कई पद खाली पड़े हैं। कोर्ट केस की संख्या कम कर व्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है। दो दशक से क्रिमिनल केस लड़ रहे एक अधिवक्ता कहते हैं कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकतर मामलों में जांच प्रक्रिया , भ्रष्टाचार की भेट चढ़ जाती है, जिससे न्यायिक व्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस फेल सिस्टम ने आम लोगों को ही पीड़ित बना दिया है। इस पर तत्काल ध्यान देने और जरूरी कदम उठाने की जरूरत है। इन पेंडिंग मामलों को निपटाने में कानून मंत्रालय में जुटा है। जजों की संख्या बढ़ाई जा रही है, स्टॉफ व कार्यालयीन सुविधाएं भी बढ़ाई जा रही है। सुनवाई में परेशानी ना हो इसके लिए ऑनलाइन पेशी यानी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के साथ-साथ अन्य तकनीकी सुविधाएं भी बढ़ाई गई है फिर भी ज्यादा असरदायी परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं!

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