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fool-in-ujjain : उज्जैन में महामूर्ख : घंटा भर के लिए घंटा घर के नीचे जुटे और जानिए क्या किया…

fool-in-ujjain : उज्जैन में महामूर्ख कहते हैं- हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई-सबको सीधा करें लुगाई

fool-in-ujjain : उज्जैन में महामूर्ख की कमी नहीं है। एक घंटा के लिए घंटा घर के नीचे जुटे महामुर्खों की मंडली ने क्या किया, आप देखेंगे तो लोट-पोट हो जायेंगे। महामुर्खों की टोली को जमा करने वाले थे स्वामी मुस्कुराके।

उज्जैन के फ्रीगंज में महामूर्ख दिवस 1 अप्रैल की मदहोश निशा में ओम हास्याय नम: द्वारा हास्य व्यंग्य का बुक्का फाड़ आयोजन एक घंटा – घंटा घर के नीचे आयोजित हुआ। व्यंग्य के गुब्बारों, हास्य की पिचकारी से रसिक जन मस्ती की गुलाल से सराबोर रहे.. सर्वप्रथम उज्जैन के विकास के प्रतीक 155 किलो वजन के मुख्य अतिथि, हास्य भेरू सुदर्शन आयातित को ढोल धमाके के साथ लाया गया। भव्य तोंद का रिबिन खोलकर पूजन अर्चन किया गया। धुंआ धार कवियों का झाड़ू, चम्मच, चिमटे, पाईप, झब्बी की माला से स्वागत किया गया। फ़ुरसतिया भाषण(स्वागत भाषण) दिनेश विजयवर्गीय दयावान ने परोसा। बढ़ लो भाषण (आभार प्रदर्शन) प्रवीण मादुस्कर ने मुस्कुराया।

घंटा बजाकर दी ठहाका सुनामी लहर की चेतावनी

घंटा बजाकर कवि समर्थ भावसार ने ठहाकों की सुनामी लहर की चेतावनी दी.. संयोजक स्वामी मुस्कुराके ने भारत में व्याप्त नई बीमारी मोदिया बिंद का जिक्र करते हुए.. हास्य के टॉनिक पिलाये… जमकर नारे लगवाए.. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई.. सबको सीधा करे लुगाई…

अंतर राष्ट्रीय कवि दिनेश दिग्गज ने हास्य व्यंग्य के तेवर में कहा कि… 24 घंटे की चेटिंग में ऐश निकल गया, जितना जमा था बैंक में सब केश निकल गया.. हुई फेसबुक पर फ्रेंडशिप जिस रीना से यारों.. जब सामने आई तो सुरेश निकल गया…

मस्ती का सर्किट से हास्य का करंट देते हुए कवि सुरेंद्र सर्किट ने अपने अंदाज में साले जीजा का उम्दा व्यंग्य देते हुए कहा कि.. साले ने दिए जीजाजी को दिए जूते गिफ्ट में …बदले में मांगा मोबाइल गिफ्ट में और कहा मोबाइल दिला दिया तो हंसते मुस्कुराते रहोगे, नही तो जिंदगी भर गिफ्ट वाले जूते खाते रहोगे …जिंदगी के लिए जान जरूरी है, जीने के लिए अरमान जरूरी है.. हमारे पास चाहे जितने गम हो, आपके चेहरों पर मुस्कान जरूरी है..

पुलिसिया कवि सतीश सागर ने हास्य का सोटा घुमाते हुए दारू और भांग की महिमा का बखान करते हुए कहा कि.. पहले तो दारू का पान किया, फिर पाव के ऊपर भांग चढ़ाई.. नाली में गिरकर करी कल्पना, साथी बन कोई सुंदरी जाम लाई.. पैर किया एक कुत्ते ने ऊँचा, नशेड़ी के मुँह पर धार लगाई.. झुमके बोला ये नमकीन शराब मेरी जान कहाँ से लाई..

मालवी कवि विक्रम विवेक ने हास्य की तलवार घुमाई और अर्ज किया.. वो दर्द दे गए बिना दवा के, पकड़ा गए साईकिल बिना हवा के.. बेरहम, बेवफा, बेहया है वो, साबित कैसे करे बिना गवाह के।

कवि कुमार संभव ने मस्ताने अंदाज में कहा कि… राखी सावंत की तरह वो ताव खाती है, सिरफिरी बेवजह ही तनाव खाती है… ऐसी लडक़ी से मैं इश्क कर बैठा हूँ, रोज पेट्रोल की तरह भाव खाती है….

कवि विजय गोपी ने पत्नी के खौफ से बचने की तरकीब बताई.. एक नहीं दो दो शादी कर लो भाई, पहली वाली मारेगी तो दूसरी बचायेगी.. अपना तो प्रयोग फैल हुआ भाई, ऐसा कहा पता था कि दोनों मिल जायेगी.. एक पकड़ेगी हाथ पैर रामजी, दूसरी वाली बेलन से ही भिड़ जायेगी।

घंटा घरी नृत्य कर समापन किया..

कवियों का तालियों से स्वागत संस्कृति प्रेमी रूप पमनानी, विक्रम विश्व विद्यालय के शेर राजेश सिंह कुशवाह, व्यंग्यकार शशांक दुबे, हरीश कुमार सिंह, चंद्रेश मंडलोई, स्वामी दिल मिलाके, प्रबोध पंड्या, संतोष सुपेकर, रवि नागाईच, कवि सुगन चंद जैन, पी एन शर्मा, अजय आगरकर, किशोर जोशी, स्वदेश उपाध्याय,अनिल बारोड,,आर एस चौहान, नंद किशोर, अनिल पांचाल ने किया.. सौ प्रतिशत मतदान की शपथ राजेश सिंह कुशवाह ने दिलवाई… सभी रसिकों ने अंत में घंटा घरी नृत्य कर समापन किया.. सभी को हास्य तरल पेय प्रदान किया गया।

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