patanjali-in-supreme-court : सुप्रीम कोर्ट को बाबा रामदेव की माफी स्वीकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-ऐसा जानबूझकर किया अब कार्रवाई होगी, माफीनामा खारिज

patanjali-in-supreme-court : सुप्रीम कोर्ट से बाबा रामदेव और बालकृष्ण को विवादित विज्ञापन मामले में राहत के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। उनके माफीनामे को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और कार्रवाई के संकेत दिय हैं। मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल बुधवार को पतंजलि के विवादित विज्ञापन केस में बाबा रामदेव और बालकृष्ण के दूसरे माफीनामे को भी खारिज कर दिया। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की बेंच ने पतंजलि के वकील विपिन सांघी और मुकुल रोहतगी से कहा कि आपने जानबूझकर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है, कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- केंद्र से खत आता है कि आपके पास मामला है। कानून का पालन कीजिए। 6 बार ऐसा हुआ। बार-बार लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहे। इसके बाद जो आए, उन्होंने भी यही किया। तीनों अफसरों को तुरंत सस्पेंड किया जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी। उत्तराखंड सरकार की ओर से ध्रुव मेहता और वंशजा शुक्ला ने एफिडेविट पढ़ा। इससे पहले 2 अप्रैल को इसी बेंच में हुई सुनवाई के दौरान पंतजलि की तरफ से माफीनामा दिया गया था। उस दिन भी बेंच ने पतंजलि को फटकार लगाते हुए कहा था कि ये माफीनामा सिर्फ खानापूर्ति के लिए है। आपके अंदर माफी का भाव नहीं दिख रहा। इसके बाद कोर्ट ने 10 अप्रैल को सुनवाई की तारीख तय की थी। सुनवाई से ठीक एक दिन पहले 9 अप्रैल को बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण ने नया एफिडेविट फाइल किया। जिसमें पतंजलि ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि इस गलती पर उन्हें खेद है और ऐसा दोबारा नहीं होगा।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने लगाई है याचिका
सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की ओर से 17 अगस्त 2022 को दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया। वहीं खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया।

यह है पूरा मामला
- ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 क्या है
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट अधिनियम, 1954 – यह कानून फर्जी इलाज और दवाओं के प्रचार और उनके मार्केटिंग पर रोक लगाता है। इसके अलावा जो किसी बीमारी को बिना साइंटिफिक प्रूफ के पूरी तरह से ठीक करने का दावा करता है, उन्हें इस कानून के उल्लंघन का दोषी माना जाता है। ये कानून ऐसे दावों को संज्ञेय अपराध की कैटेगरी में मानता है।
- कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 क्या है
इस कानून के तहत यदि कोई कंपनी झूठा या भ्रामक प्रचार करती है जो कंज्यूमर के हित के खिलाफ है तो उसे 2 साल की सजा और उस पर 10 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। अगर कंपनी ऐसा अपराध दोबारा करती है तो जुर्माना बढ़कर 50 लाख रुपए और पांच साल की सजा मिलती है।