तीर्थंकरों को तपोबल प्रदान करने वाले दुर्लभ वृक्षों के दर्शन उज्जैन में संभव

समाचार आज। उज्जैन
आज पूरे विश्व में महावीर स्वामी जी की जयंती मनाई जा रही है। साथ ही समाज के अनुयायी अपने सभी 24 तीर्थंकरों का पुण्य स्मरण करेंगे। इस मौके पर हम आपकों बताने जा रहे हैं ऐसी वाटिका जो जिनके वृक्ष के नीचे बैठकर समाज के सभी तीर्थंकरों ने कठिन साधना कर तपोबल प्राप्त किया था। ऐसे सभी पेड़ उज्जैन में स्थित आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रांगण में लगे हैं। इस स्थान को तीर्थंकर वाटिका का नाम दिया गया है।
उज्जैन के मंगलनाथ रोड पर धन्वन्तरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय स्थित है। इस महाविद्यालय के परिसर में यह तीर्थंकर वाटिका बनाई गई है। जैन अनुयायिायो के मुताबिक जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। वैसे ही बौद्धों में 24 बुद्ध, हिन्दुओं में 24 अवतार और मुस्लिमों में 24 पैगम्बरों की बात आती है। जैनों के सभी तीर्थंकर दीक्षा के बाद साधना में लग जाते हैं और फिर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। भगवान महावीर स्वामी को साल वृक्ष के नीचे गोदुग्धासन में ध्यान करते केवलज्ञान हुआ था। जैन धर्म के अनुसार भगवान ऋषभनाथ से लेकर महावीर स्वामी तक तीर्थंकर हुए हैं। प्रत्येक ने तपस्या के लिए किसी विशिष्ट वृक्ष के नीचे साधना कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। तप से इन वृक्षों में भी विशिष्ट गुण व्याप्त हुए।
इन पौधों को यहां के आयुर्वेद कॉलेज के प्रांगण में लगाने का क्रम शिक्षकों और जैन समाज के सहयोग से किया गया। 16 जनवरी 2021 को विधायक पारस जैन ने वाटिका की स्थापना की थी। पौधों की खरीदी और ट्री-गार्ड के लिए राशि यहां के शिक्षकों द्वारा दी गई। झालारा पाटन, हरिद्वार और ऋषिकेश से 9 महीनों की तलाश के बाद यहां पौधे लाकर लगाए गए। इसमें लगाए पौधे अब विकसित होना शुरू हो चुके हैं। इस वाटिका को उज्जैन आने वाले पर्यटकों और जैन सहित अन्य समाजजनों के लिए भी विकसित किया जाएगा। वाटिका में 24 तीर्थंकरों की ज्ञान प्राप्ति के उन पेड़ों को संजोया जाना प्रभु के प्रति अपार भक्ति भाव को ही दर्शाता है। इनके दर्शन से पुण्य की प्राप्ति होती है।
खास बात यह है कि उज्जैन की यह तीर्थंकर वाटिका प्रदेश में दूसरी वाटिका है। उज्जैन के अलावा केवल ग्वालियर के आयुर्वेद महाविद्यालय में इस तरह की वाटिका है। धार्मिक मान्यता है कि तीर्थंकरों की साधना वाले इन वृक्षों के दर्शन मात्र से बहुत पुण्य मिलता है। तीर्थंकर वाटिका में लगाए गए हर पौधे का न सिर्फ धार्मिक महत्व है, बल्कि इसके आयुर्वेद गुण भी हैं।
तीर्थंकर वाटिका का संचालन कॉलेज के द्रव्य गुण विभाग द्वारा किया जाता है, जिसकी एचओडी डॉ. सुनीता डी. राम, सहायक प्राध्यापक डॉ. शिरोमणि मिश्रा और डॉ. रवींद्र शर्मा हैं। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. जेपी चौरसिया ने बताया कॉलेज के ही 5 शिक्षक पैथोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. अजय कीर्ति जैन, मेडिसिन डिपार्टमेंट के सहा. प्राध्यापक डॉ. नरेश जैन, अंग तंत्र की सहायक प्राध्यापिका डॉ. प्रीति जैन, चरक संहिता के सहा. प्राध्यापक डॉ. जितेंद्र जैन और ईएनटी डिपार्टमेंट की सहा. प्राध्यापिका डॉ. अनुभा जैन शामिल हैं। प्रचार-प्रसार के अभाव में इस वाटिका की अधिकांश समाजजनों को जानकारी नहीं है। जल्दी ही के वाटिका के आसपास पथ बनाकर इसे विकसित किया जाएगा। मुख्य गेट के पास एक द्वार भी बनाये जाने की योजना है ताकि उज्जैन आने वाले पर्यटक और जैन सहित अन्य समाजजन इस वाटिका के दर्शन कर सकें।
हम आपकों बता दें कि 24 तीर्थंकरों में श्री ऋषभनाथ जी ने वट वृक्ष, श्री अजितनाथ जी ने सप्तपर्ण, श्री संभवनाथ जी ने शाल, श्री अभिनंदननाथ जी ने सरल, श्री सुमतिनाथ जी और श्री पद्मनाथ जी ने प्रियंगु, श्री सुपाश्र्वनाथ जी ने शिरिष, श्री चंद्रप्रभुजी ने नागकेशर, श्री पुष्पदंत जी ने विभोतकी, श्री शीतलनाथ जी ने बिल्व, श्री श्रेयांसनाथ जी ने तेंदू, श्री वासुपूज्य जी ने कदंब, श्री विमलनाथ जी ने जम्बू, श्री अनंतनाथ जी ने पीपल, श्री धर्मनाथ जी ने दधिपर्ण, श्री शांतिनाथ जी ने नंदी, श्री कुंथुनाथ जी ने तिलक, श्री अरहनाथ जी ने आम, श्री मल्लिनाथ जी ने अशोक श्री मुनि सुव्रतनाथ जी ने चम्पक, श्री नमिनाथ जी ने बकुल, श्री नेमिनाथ जी ने वंश, श्री पाश्र्वनाथ जी ने देवदारु और श्री महावीर स्वामी जी ने साल के पेड़ के नीचे बैठकर अपनी तपस्या पूर्ण की थी। इन सभी वृक्षों के दर्शन आयुर्वेदिक कॉलेज स्थित तीर्थंकर वाटिका में किये जा सकते हैं।
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