
महाअष्टमी पर उज्जैन में नगर पूजा, 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिरों में किया पूजन
त्रिकालदृष्टि/समाचार आज
पृथ्वी लोक के देवता महाकाल की नगरी में शनिवार को नवरात्रि की महाष्टमी पर विशेष परंपरा का निर्वहन किया गया। परंपरानुसार महाष्टमी की सुबह निरंजनी अखाड़े की ओर से नगर पूजा की गई। चौबीस खंभा स्थित माता महामाया व महालया मंदिर में विधि-विधान के साथ नगर पूजा की गई, जिसमें माता को मदिरा (शराब) का भोग लगाकर नगर में मदिरा की धार लगाई गई।शहर के 40 से अधिक देवी मंदिर और भैरव मंदिरों मदिरा की मदिरा की धार चढ़ाई गई। नगर की सुख समृद्धि के लिए होने वाली पूजा में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी महाराज सहित अन्य संत गण भी मौजूद थे।
नवरात्र में नगर पूजा की परंपरा सम्राट विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है। शारदीय नवरात्र में इस परंपरा का निर्वहन शासन की ओर से किया जाता है। चैत्र नवरात्र में नगर पूजा की शुरुआत निरंजनी अखाड़े ने की है। इस बार भी महाअष्टमी पर अखाड़े की ओर से महंत रवींद्रपुरी महाराज ने अन्य संतो की उपस्थिति में विधि विधान के साथ पूजा की। शनिवार को सुबह माता महामाया व महालया का पूजन कर मदिरा की धार लगाई गई। परंपरा अनुसार देवी व भैरव को मदिरा अर्पित कर पूजा अर्चना की जाती है।
ढोल-ढमाकों के साथ निकले मदिरा की धार चढ़ाते हुए
उज्जैन भारत में एक मात्र ऐसा शहर है जहां पर माता को मदिरा चढ़ाने के बाद 40 से अधिक मंदिरो में ये शराब की धार चढ़ाई जाती है। माता का पूजन के बाद संतों ने हाथ में देवी व भैरव मंदिरों में अर्पित होने वाले भोग के साथ ही हांडी में मदिरा भर कर रवाना हुए । इस दौरान नगर परिक्रमा में मदिरा की धार टूटती नही है। नगर के परिक्षेत्र में स्थित 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिरों में भोग आदि अर्पित करते हुए परिक्रमा का समापन हांड़ी फोड़ भैरव मंदिर मंगल नाथ मार्ग पर होगा।
विशेष पूजा का विधान
नगर पूजन के दौरान नगर व विश्व की सुख समृद्धि हेतु चौबीस खम्बा स्थित माता महालाया व महामाया को मदिरा(शराब) अर्पित करते हैं पूजन पश्चात कोतवाल परंपरा अनुसार एक हांडी में शराब लिए जिसमें छोटा सा छेद होता है। 27 किलोमीटर तक पैदल भ्रमण कर मार्ग में आने वाले करीब 40 मंदिरों में धार को अर्पित करते है जो देर शाम तक चलती है, साथ ही मदिरा को प्रसाद स्वरूप श्रद्धालु भी ग्रहण करते हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पूरी के मुताबिक प्राचीन काल से नगर पूजा नगर में देवीय प्रकोप रोग आदि से बचाव व नगर की सुख समृद्धि के लिए किया जाता है।